अधीरः कर्कशः स्तब्धः कुचेलः स्वयमागतः |
एते पञ्च न पूज्यन्ते व्रहस्पति समा यदि ||
अर्थ = अधीर, कटु भाषी, उद्दण्ड् , मलिन और फटे कपडे पहने हुए, अनजान और बिना बुलाये आया हुआ', इन पांच प्रकार के व्यक्तियों का आदर कभी नहीं करना चाहिये , चाहे वह व्यक्ति देवगुरु वृहस्पति के संमान ही क्यों न हो |
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एते पञ्च न पूज्यन्ते व्रहस्पति समा यदि ||
अर्थ = अधीर, कटु भाषी, उद्दण्ड् , मलिन और फटे कपडे पहने हुए, अनजान और बिना बुलाये आया हुआ', इन पांच प्रकार के व्यक्तियों का आदर कभी नहीं करना चाहिये , चाहे वह व्यक्ति देवगुरु वृहस्पति के संमान ही क्यों न हो |
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