Jai Mata Ki! | जय माता की!


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ॐ जय जय गौमाता, मैया जय जय गौमाता ।
जो कोई तुमको ध्याता, त्रिभुवन सुख पाता । । मैया जय । ।

सुख समृद्धि प्रदायनी, गौ की कृपा मिले ।
जो करे गौ की सेवा, पल में विपत्ति टले । । मैया जय । ।

आयु ओज विकासिनी, जन जन की माई ।
शत्रु मित्र सुत जाने, सब की सुख दाई । । मैया जय । ।

सुर सौभाग्य विधायिनी, अमृती दुग्ध दियो ।
अखिल विश्व नर नारी, शिव अभिषेक कियो । । मैया जय । ।

ममतामयी मन भाविनी, तुम ही जग माता ।
जग की पालनहारी, कामधेनु माता । । मैया जय । ।

संकट रोग विनाशिनी, सुर महिमा गायी ।
गौ शाला की सेवा, संतन मन भायी । । मैया जय । ।

गौ माँ की रक्षा हित, हरी अवतार लियो ।
गौ पालक गौपाला, शुभ सन्देश दियो । । मैया जय । ।

श्री गौमात की आरती, जो कोई सुत गावे ।
"पदम्" कहत वे तरणी, भव से तर जावे । । मैया जय । ।
। । भारत माता की जय, गौ माता की जय । ।


❤️ Jai Mata Sita Ki ❤️


Katakeswari Chandi Mandir, one of the oldest temples in Odisha, attracts more than 20 lakh devotees a year. Here, Goddess Kata Chandi is worshipped and she is considered the presiding deity of the Silver City. The fifth generation of the first priest of the temple still continues to perform the daily rituals of the Goddess. Although there is no written history of the temple, the story goes that the late Hansa Panda, who was the Purohit of the then Kanika Raja of Cuttack, used to graze cattle and sheep in the land. One day Panda was feeling tired and took rest there. On the same night, the Goddess Katakeswari Chandi appeared in his dream and requested him to take her out of the land. He narrated the incident to the Kanika king who ordered his workers to dig up the place.

Subsequently, 40 bullock carts of red sindoor and an idol were found. The idol is being worshipped as Goddess Katak Chandi since then. Locals worship the Goddess as a Living Goddess. Durga Puja is a major festival celebrated in the temple when the Goddess is worshipped in various incarnations of Goddess Durga. Durga Puja is celebrated in temple for 16 days starting from Ashwina Krishna Ashtami till Ashwina Shukla Navami and Vijayadashami. Only Hindus are allowed in the temple and the best time to visit is during Dussehra.

This is the same vigraha which the king viarat of matsya kingdom used to worshipp in his sanctorum palace .


Katakeshwari Chandi Mandir, Odisha


Репост из: Ancient India | प्राचीन भारत
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* Thapta Kundam * (hot spring) This place is located at the
* Mani Karan Shiva Temple *, about 100 km from Kullu-Manali in Himachal Pradesh.

In this fountain. The miracle of the people leaving the pot of rice floating and taking it in stride in five minutes amazes onlookers.


रानी तारामती ने जब देखा कि जागरण का समय हो रहा है, परन्तु महाराज को नींद नहीं आ रही तो उसने माता वैष्णों देवी से मन ही मन प्रार्थना की कि माता, किसी उपाय से राजा को सुला दें ताकि वो जागरण में सम्मिलित हो सके। राजा को नींद आ गई, तारामती रोशनदान से रस्सा बांधकर महल से उतरीं और रूक्को के घर जा पहुंची। उस समय जल्दी के कारण रानी के हांथ से रेशमी रूमाल तथा पांव का एक कंगन रास्ते में ही गिर पड़ा, उधर थोड़ी देर बाद राजा हरिश्चन्द्र की नींद खुल गई। वह भी रानी का पता लगाने निकल पड़े। उन्हें मार्ग में रानी का कंगन व रूमाल दिखा। राजा ने दोनो चीजें रास्ते से उठाकर अपने पास रख लीं और जागरण हो रहा था, वहां जा पहुँचे और वह एक कोने में चुपचाप बैठकर दृश्य देखने लगा। जब जागरण समाप्त हुआ तो सबने माता की अरदास की, उसके बाद प्रसाद बांटा गया, रानी तारामती को जब प्रसाद मिला तो उसने झोली में रख लिया। यह देख लोगों ने पूछा कि उन्होंने वह प्रसाद क्यों नहीं खाया ?
यदि रानी प्रसाद नहीं खाएंगी तो कोई भी प्रसाद नहीं खाएगा। रानी बोली कि पंडितों ने प्रसाद दिया, वह उन्होंने महाराज के लिए रख लिया था। अब उन्हें उनका प्रदान करें। प्रसाद ले तारा ने खा लिया। इसके बाद सब भक्तों ने माँ का प्रसाद खाया, इस प्रकार जागरण समाप्त करके, प्रसाद खाने के पश्चात् रानी तारामती महल की तरफ चलीं।
तब राजा ने आगे बढ़कर रास्ता रोक लिया और कहा कि रानी ने नीचों के घर का प्रसाद खाकर अपना धर्म भ्रष्ट कर लिया था। अब वे उन्हें अपने घर कैसे रखें ? रानी ने तो कुल की मर्यादा व प्रतिष्ठा का भी ध्यान नहीं रखा। जो प्रसाद वे अपनी झोली में राजा के लिये लाई थीं; क्या उसे खिला कर वे राजा को भी अपवित्र करना चाहती थीं ?


तीसरे जन्म में वह छिपकली राजा स्पर्श के घर कन्या के रूप में जन्मी। दूसरी बहन तारा देवी ने फिर मनुष्य जन्म लेकर तारामती नाम से अयोध्या के प्रतापी राजा हरिश्चन्द्र के साथ विवाह किया।
राजा स्पर्श ने ज्योतिषियों से कन्या की कुण्डली बनवाई ज्योतिषियों ने राजा को बताया कि कन्या आपके लिये हानिकारक सिद्ध होगी, शकुन ठीक नहीं है। अत: वे उसे मरवा दें। राजा बोले कि लड़की को मारने का पाप बहुत बड़ा है। वे उस पाप का भागी नहीं बन सकते।
तब ज्योतिषियों ने विचार करके राय दी कि राजा उसे एक लकड़ी के सन्दूक में बन्द करके ऊपर से सोना-चांदी आदि जड़वा दें और फिर उस सन्दूक के भीतर लड़की को बन्द करके नदी में प्रवाहित करवा दें। सोने चांदी से जड़ा हुआ सन्दूक अवश्य ही कोई लालच में आकर निकाल लेगा और राजा को कन्या वध का पाप भी नहीं लगेगा। ऐसा ही किया गया और नदी में बहता हुआ सन्दूक काशी के समीप एक भंगी को दिखाई दिया तो वह सन्दूक को नदी से बाहर निकाल लाया।
उसने जब सन्दूक खोला तो सोने-चांदी के अतिरिक्त अत्यन्त रूपवान कन्या दिखाई दी। उस भंगी के कोई संतान नहीं थी। उसने अपनी पत्नी को वह कन्या लाकर दी तो पत्नी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। उसने अपनी संतान के समान ही बच्ची को छाती से लगा लिया। भगवती की कृपा से उसके स्तनो में दूध उतर आया, पति-पत्नी दोनो ने प्रेम से कन्या का नाम रूक्को रख दिया। रूक्को बड़ी हुई तो उसका विवाह हुआ। रूक्को की सास महाराजा हरिश्चन्द्र के घर सफाई आदि का काम करने जाया करती थी। एक दिन वह बीमार पड़ गई तो तो रूक्को महाराजा हरिश्चन्द्र के घर काम करने के लिये पहुँच गई। महाराज की पत्नी तारामती ने जब रूक्को को देखा तो वह अपने पूर्व जन्म के पुण्य से उसे पहचान गई। तारामती ने रूक्को से कहा की वो उसके पास आकर बैठे। महारानी की बात सुनकर रूक्को बोली कि वो एक नीचि जाति की भंगिन है, भला वह रानी के पास कैसे बैठ सकती थी ?
तब तारामती ने उसे बताया कि वह उसके पूर्व जन्म के सगी बहन थी। एकादशी का व्रत खंडित करने के कारण उसे छिपकली की योनि में जाना पड़ा जो होना था। जो होना था वो तो हो चुका। अब उसे अपने वर्तमान जन्म को सुधारने का उपाय करना चाहिये और भगवती वैष्णों माता की सेवा करके अपना जन्म सफल बनाना चाहिये। यह सुनकर रूक्को को बड़ी प्रसन्नता हुई और जब उसने उपाय पूछा तो रानी ने बताया कि वैष्णों माता सब मनोरथों को पूरा करने वाली हैं। जो लोग श्रद्धापूर्वक माता का पूजन व जागरण करते हैं, उनकी सब मनोकाना पूर्ण होती हैं।
रूक्को ने प्रसन्न होकर माता की मनौती मानते हुये कहा कि यदि माता की कृपा से उसे एक पुत्र प्राप्त हो गया तो वो माता का पूजन व जागरण करायेगी। माता ने प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। फलस्वरूप दसवें महीने उसके गर्भ से एक अत्यन्त सुन्दर बालक ने जन्म लिया; परन्तु दुर्भाग्यवश रूक्को को माता का पूजन-जागरण कराने का ध्यान न रहा। जब वह बालक पांच वर्ष का हुआ तो एक दिन उसे माता (-चेचक) निकल आई। रूक्को दु:खी होकर अपने पूर्वजन्म की बहन तारामती के पास आई और बच्चे की बीमारी का सब वृतान्त कह सुनाया। तब तारामती ने पूछा कि उससे माता के पूजन में कोई भूल तो नहीं हुई । इस पर रूक्को को छह वर्ष पहले की बात याद आ गई। उसने अपराध स्वीकार कर लिया। उसने फिर मन में निश्चय किया कि बच्चे को आराम आने पर जागरण अवश्य करवायेगी।
भगवती की कृपा से बच्चा दूसरे दिन ही ठीक हो गया। तब रूक्को ने देवी के मन्दिर में ही जाकर पंडित से कहा कि उसे अपने घर माता का जागरण करना है, अत: वे मंगलवार को उसके घर पधार कर कृतार्थ करें। पंडित जी बोले कि वहीं पांच रूपये देती जाये। पण्डित जी उसके नाम से मन्दिर में ही जागरण करवा देंगे।क्योकि वह एक नीच जाति की स्त्री है, इसलिए वे उसके घर में जाकर देवी का जागरण नहीं कर सकते। रूक्को ने कहा कि माता के दरबार में तो ऊंच-नीच का कोई विचार नहीं होता। वे तो सब भक्तों पर समान रूप से कृपा करती हैं। अत: उनको कोई एतराज नहीं होना चाहिए। इस पर पंडित ने आपस में विचार करके कहा कि यदि महारानी उसके जागरण में पधारें; तब तो वे भी स्वीकार कर लेंगे।
यह सुनकर रूक्को महारानी के पास गई और सब वृतान्त कर सुनाया। तारामती ने जागरण में सम्मिलित होना सहर्ष स्वीकार कर लिया। जिस समय रूक्को पंडितो से यह कहने के लिये गई महारानी जी जागरण में आवेंगी, उस समय सेन नाम का नाई वहाँ मौजूद था। उसने सब सुन लिया और महाराजा हरिश्चन्द्र को जाकर सूचना दी। राजा को सेन नाई की बात पर विश्वास नहीं हुआ कि महारानी भंगियों के घर जागरण में नहीं जा सकती हैं।फिर भी परीक्षा लेने के लिये उसने रात को अपनी उंगली पर थोड़ा सा चीरा लगा लिया, जिससे नींद न आए।


Tara Rani Ki Katha - Bhagvati Jagran Katha
तारा रानी की कथा
राजा स्पर्श माँ भगवती के पुजारी थे और रात-दिन महामाई की पूजा किया करते थे। माँ ने भी उन्हें राजपाट, धन-दौलत, ऐशो-आराम के सभी साधन दिये थे, कमी थी तो सिर्फ यह कि उनके घर में कोई संतान नही थी। यह गम उन्हें दिन-रात सताता था। वो माँ से यही प्रार्थना करते थे कि माँ उन्हें एक लाल बख्श दें, ताकि वे भी संतान का सुख भोग सकें। उनके पीछे भी उनका नाम लेने वाला हो, उनका वंश चलता रहे। माँ ने उसकी पुकार सुन ली। एक दिन माँ ने आकर राजा को स्वप्न में दर्शन दिये और कहा कि वे उसकी तेरी भक्ति से बहुत प्रसन्न हैं। उन्होंने राजा को दो पुत्रियाँ प्राप्त होने का वरदान दिया।
कुछ समय के बाद राजा के घर में एक कन्या ने जन्म लिया, राजा ने अपने राज दरबारियों को बुलाया, पण्डितों व ज्योतिषों को बुलाया और बच्ची की जन्म कुण्डली तैयार करने का आदेश दिया।पण्डित तथा ज्योतिषियों ने उस बच्ची की जन्म कुण्डली तैयार की और कहा कि वो कन्या तो साक्षात देवी है। यह कन्या जहाँ भी कदम रखेगी, वहाँ खुशियां ही खुशियां होंगी। कन्या भी भगवती की पुजारिन होगी। उस कन्या का नाम तारा रखा गया। थोड़े समय बाद राजा के घर वरदान के अनुसार एक और कन्या ने जन्म लिया। मंगलवार का दिन था।
पण्डितों और ज्योतिषियों ने जब जन्म कुण्डली तैयार की तो उदास हो गये। राजा ने उदासी का कारण पूछा तो वे कहने लगे की वह कन्या राजा के लिये शुभ नहीं है। राजा ने उदास होकर ज्योतिषियों से पूछा कि उन्होंने ऐसे कौन से बुरे कर्म किये हैं जो कि इस कन्या ने उनके घर में जन्म लिया ? उस समय ज्योतिषियों ने ज्योतिष से अनुमान लगाकर बताया कि वे दोनो कन्याएं जिन्होंने उनके घर में जन्म लिया था, पूर्व जन्म में देवराज इन्द्र के दरबार की अप्सराएं थीं। उन्होंने सोचा कि वे भी मृत्युलोक में भ्रमण करें तथा देखें कि मृत्युलोक में लोग किस तरह रहते हैं। दोनो ने मृत्युलोक पर आकर एकादशी का व्रत रखा। बड़ी बहन का नाम तारा था तथा छोटी बहन का नाम रूक्मन। बड़ी बहन तारा ने अपनी छोटी बहन से कहा कि रूक्मन आज एकादशी का व्रत है, हम लोगों ने आज भोजन नहीं करना।अतः वो बाजार जाकर फल कुछ ले आये। रूक्मन बाजार फल लेने के लिये गई। वहां उसने मछली के पकोड़े बनते देखे। उसने अपने पैसों के तो पकोड़े खा लिये तथा तारा के लिये फल लेकर वापस आ गई और फल उसने तारा को दे दिये। तारा के पूछने पर उसने बताया कि उसने मछली के पकोड़े खा लिये हैं।
तारा ने उसको एकादशी के दिन माँस खाने के कारण शाप दिया कि वो निम्न योनियों में गिरे। छिपकली बनकर सारी उम्र ही कीड़े-मकोड़े खाती रहे।
उसी देश में एक ऋषि गुरू गोरख अपने शिष्यों के साथ रहते थे। उनके शिष्यों में एक शिष्य तेज स्वभाव का तथा घमण्डी था। एक दिन वो घमण्डी शिष्य पानी का कमण्डल भरकर खुले स्थान में, एकान्त में, जाकर तपस्या पर बैठ गया। वो अपनी तपस्या में लीन था, उसी समय उधर से एक प्यासी कपिला गाय आ गई। उस ऋषि के पास पड़े कमण्डल में पानी पीने के लिए उसने मुँह डाला और सारा पानी पी गई। जब कपिता गाय ने मुँह बाहर निकाला तो खाली कमण्डल की आवाज सुनकर उस ऋषि की समाधि टूटी। उसने देखा कि गाय ने सारा पानी पी लिया था।
ऋषि ने गुस्से में आ उस कपिला गाय को बहुत बुरी तरह चिमटे से मारा; जिससे वह गाय लहुलुहान हो गई। यह खबर गुरू गोरख को मिली तो उन्होंने कपिला गाय की हालत देखी। उन्होंने अपने उस शिष्य को बहुत बुरा-भला कहा और उसी वक्त आश्रम से निकाल दिया। गुरू गोरख ने गौ माता पर किये गये पाप से छुटकारा पाने के लिए कुछ समय बाद एक यज्ञ रचाया। इस यज्ञ का पता उस शिष्य को भी चल गया, जिसने कपिला गाय को मारा था। उसने सोचा कि वह अपने अपमान का बदला जरूर लेगा। यज्ञ शुरू होने उस शिष्य ने एक पक्षी का रूप धारण किया और चोंच में सर्प लेकर भण्डारे में फेंक दिया; जिसका किसी को पता न चला। वह छिपकली जो पिछले जन्म में तारा देवी की छोटी बहन थी तथा बहन के शाप को स्वीकार कर छिपकली बनी थी, सर्प का भण्डारे में गिरना देख रही थी।
उसे त्याग व परोपकार की शिक्षा अब तक याद थी। वह भण्डारा होने तक घर की दीवार पर चिपकी समय की प्रतीक्षा करती रही। कई लोगो के प्राण बचाने हेतु उसने अपने प्राण न्योछावर कर लेने का मन ही मन निश्चय किया। जब खीर भण्डारे में दी जाने वाली थी, बाँटने वालों की आँखों के सामने ही वह छिपकली दीवार से कूदकर कढ़ाई में जा गिरी। लोग छिपकली को बुरा-भला कहते हुये खीर की कढ़ाई को खाली करने लगेतो उन्होंने उसमें मरे हुये सांप को देखा। तब जाकर सबको मालूम हुआ कि छिपकली ने अपने प्राण देकर उन सबके प्राणों की रक्षा की थी। उपस्थित सभी सज्जनों और देवताओं ने उस छिपकली के लिए प्रार्थना की कि उसे सब योनियों में उत्तम मनुष्य जन्म प्राप्त हो तथा अन्त में वह मोक्ष को प्राप्त करे।


तीसरे जन्म में वह छिपकली राजा स्पर्श के घर कन्या के रूप में जन्मी। दूसरी बहन तारा देवी ने फिर मनुष्य जन्म लेकर तारामती नाम से अयोध्या के प्रतापी राजा हरिश्चन्द्र के साथ विवाह किया।


Jai Mata Ki! ❤️




Репост из: Ancient India | प्राचीन भारत
Sri Dakshin Kali Mandir, Chandi Ghat, Haridwar
This Kali temple is located almost in the wilderness, next to Chandi Ghat and on the banks of Ganga where it is known as Neeldhara. The Ganga gently flows southwards and this is why this temple is called Dakshin Kali (Dakshin is South in Sanskrit). The temple is small and its premises a little bigger than the temple. Marble Lion seems a recent addition. The idol in black seems old, how old is difficult to judge – but then it hardly matters. The specialty of this temple is that the Pooja is done at the midnight here when Ma Kali is offered Khichadi.
An elaborate board tells us that this is the place where Shiva drank the poison that came out of Samudra Manthan or churning of the ocean. After drinking it and holding it in his throat, he felt the immense heat, and he took bath in the Ganga here – giving it the name Neeldhara. Shiva, as we know, is also called Neelkanth for holding the blue poison in his throat. The board further tells you all the rituals and their dates as per the Indian calendar at the temple.
For the followers of Devi, this is the first Siddhapeeth of 10 Peethas of Dash Mahavidyas.


Репост из: Ancient India | प्राचीन भारत
Sri Dakshin Kali Mandir, Chandi Ghat


JAI MATA KI!


Sampada Mata Ki kahani - संपदा माता की कहानी - https://www.youtube.com/watch?v=zORLEblAQSM


Jai Mata Ki! Har Har Mahadev!


Mata Ganga Temple, Haridwar
This is the most famous of Devi temples in the town. Ganga enters the plains from Devbhumi here and hence it is also called Gangadwar. Located almost at the edge of Ganga near Brahmakund, it is a really small temple with an idol of Ganga. In scriptures, Ganga is a Devi in Dravya or liquid form. Here she is the prime Goddess whom the pilgrims come to meet.
There is no greater motivation for a Hindu pilgrim than to take a dip in Holy Ganga in this holy town and at Ganga in Kashi.
In fact, most temples here have an idol of Ganga somewhere, making her look omnipresent on land surrounding the river.


sankata mata का मंदिर*
रानी कटरा में माता sankata mata का मंदिर हैऔर 600 साल पुराने इस मंदि‍र में स्‍थापि‍त संकटा देवी की मूर्ति की यह वि‍शेषता है,कि संकटा देवी की यह मूर्ति दि‍न में तीन रूप बदलती है.
सुबह के समय संकटा देवी बालरूप में
दोपहर के समय संकटा देवी यौवन अवस्‍था में
शाम के समय संकटा देवी प्रौढ़ावस्‍था में दि‍खाई देती है
sankata mata कश्‍मीरि‍यों की कुल देवी के रूप में वि‍ख्‍यात हैं.रानी कटरा में यह मंदिर जहां पर स्थित है पहले इस मोहल्ले को कश्मीरी मोहल्ला कहा जाता था .यह मंदि‍र कब स्‍थापि‍त कि‍या गया, इसके बारे में कोई भी सही पर्याप्त जानकारी नहीं है.भूल-भुलैया का निर्माण कराते समय आसि‍फुद्दौला को इस मंदि‍र के बारे में पता चला थाऔर तब पहली बार इस मंदि‍र का जीर्णोद्धार आसि‍फुद्दौला ने कराया थाऔर दूसरी बार इस मंदि‍र का जीर्णोद्धार राजा उमराव ने कराया था.


Mata Sureshwari Temple, Haridwar
This is an ancient temple dedicated to Devi as Sureshwari. She is supposed to bless people with children and cure them of communicable diseases. Sureshwari Devi temple marks the place where Indra did penance to please the goddess when he was expelled from his own kingdom. This is the place where Goddess gave him the darshan.
A little above the Sureshwari Devi Temple there is a Kali Temple.
Located on Sooroot hill inside the Rajaji National Park, you will have to take a forest vehicle to visit the temple.



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