सख्त राहों में भी आसान सफ़र लगता है,
ये मेरी माँ की दुआओं का असर लगता है।
जब-जब कागज पर लिखा मैंने माँ का नाम,
कलम अदब से बोल उठी हो गये चारों धाम।
उसके होंठों पे कभी बद्दुआ नहीं होती,
बस इक माँ है जो कभी खफा नहीं होती।
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है।
- मुसाफ़िर (vaibhav)
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