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"मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुँगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं

या सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगो में घुलती रहूँगी
या रंगो की बाँहों में बैठ कर
तेरे केनवास पर बिछ जाऊँगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे ज़रुर मिलूँगी

या फिर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूँगी

और एक शीतल अहसास बन कर
तेरे सीने से लगूँगी

मैं और तो कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म ख़त्म होता है

तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है

पर यादों के धागे
कायनात के लम्हें की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूँगी
उन धागों को समेट लूंगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं

मैं तुझे फिर मिलूँगी "

- इमरोज़ के लिए लिखी अमृता प्रीतम की कविता


"मैं रंगों के संग खेलता
रंग मेरे संग खेलते
रंगों के संग खेलता-खेलता
मैं इक रंग हो गया
कुछ बनने, कुछ न बनने से
बेफिक्र, बेपरवाह..."

- इमरोज़


"इंसान अपने अकेलेपन से निजात पाने के लिए मुहब्बत करता है और मुहब्बत इस बात की तस्दीक करती है कि उसका अकेलापन अब ताउम्र कायम रहेगा।"
-अमृता प्रीतम


"मैं उसे खोजता हूँ
जो आदर्मी है
और
अब भी आदमी है
तबाह होकर भी आदमी है
चरित्र पर खड़ा
देवदार की तरह बड़ा।"


-केदारनाथ अग्रवाल


"मुश्किल है इमरोज होना
रोज रोज क्या, एक रोज होना"


- अमृता प्रीतम


"जो कभी एकांत में बैठकर, किसी की स्मृति में, किसी के वियोग में, सिसक-सिसक और बिलख-बिलख नहीं रोया, वह जीवन के ऐसे सुख से वंचित है, जिस पर सैकड़ों हँसिया न्योछावर हैं। उस मीठी वेदना का आनंद उन्हीं से पूछो, जिन्होंने यह सौभाग्य प्राप्त किया है।"
-प्रेमचंद


"जो जितना अच्छा होता है, भगवान उसे उतनी ही चिंता में रखते हैं।"
-रामधारी सिंह दिनकर


"स्त्री प्रेम करने वाले को भूल सकती है, सम्मान करने वाले को कभी नहीं।"
- अज्ञात


"सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।"


-रामधारी सिंह दिनकर


"जो भी पुरुष निष्पाप है, निष्कलंक है, निडर है, उसे प्रणाम करो, क्योंकि वह छोटा-मोटा ईश्वर है।"
-डी. एच. लॉरेंस


"जीतने की उम्मीद नजर नहीं आती।
मरने की वजह नजर नहीं आती।

बेताब हूँ मंजिल पर पहुँचने के लिए,
पर मंजिल तक पहुँचने की राह नजर नहीं आती।

हाल-ए-दिल मेरा कैसे बयाँ करूँ,
कोई प्रेरित शख्स की नजर, नजर नहीं आती,

जिस पर बैठ कर देखा था आसमाँ में सितारों को,
पेड़ पर वो डाल नजर नहीं आती।

एक विश्वास ने सिखाया था जिंदगी जीने का हुनर
उस हुनर में फिर भी तब्दीलियाँ नजर नहीं आती

जीतने की उम्मीद नजर नहीं आती।
मरने की वजह नजर नहीं आती।"

-प्रकाश यादव "प्रयागी"


"इन मकानों को, घर बनाने की खातिर।
आंगन मे खड़ी दीवारें, गिरायी हैं हमने।।"

-यूनुस खान


"ज़िन्दगी
जब कोई बात
स्वीकार कर लेती है
तो वो हाॅं नहीं कहती

खुशी-खुशी वो
उस काम में जुट जाती है
जिसे उसने
स्वीकार किया है

और जब सफलता के
शिखर पर पहुॅंचती है
तब रोम-रोम से
खुशी छलकाती है

पर फिर भी
वो हाॅं नहीं कहती
केवल
और केवल
स्वीकार करती है....।"

-अमर भोज


"अकेलेपन से बढ़कर आनन्द नहीं, आराम नहीं। स्वर्ग है वह एकान्त, जहाँ शोर नहीं, धूमधाम नहीं।"

- रामधारी सिंह दिनकर


"बस इतना होश है मुझ को कि अजनबी हैं सब
रुका हुआ हूँ सफ़र में किसी दयार में हूँ

मैं हूँ भी और नहीं भी अजीब बात है ये
ये कैसा जब्र है मैं जिस के इख़्तियार में हूँ"


-मुनीर नियाज़ी


"उस एक कच्ची सी उम्र वाली के फ़लसफ़े को कोई न समझा....जब उस के कमरे से लाश निकली ख़ुतूत निकले तो लोग समझे।"
- अहमद सलमान


"कभी दरियादिल बनकर देखना तुम
मुहब्बत भी लुटा कर देखना तुम।

नहीं परवाह जिनको अब तुम्हारी
नजर उनसे मिलाकर देखना तुम।

मिटेंगे फासले आसमां जमीं के
जरा नफ़रत भुलाकर देखना तुम।

शिकायत है अगर कह दो उसे तुम
कभी चुप्पी हटाकर देखना तुम।

मिलेगी तब खुशी कृष्णा सभी को
दिलों में प्यार भरकर देखना तुम।"


-कृष्ण कान्त बडोनी


"जब लेखक का काम बोलने लगे तो उसे अपना मुँह बंद कर लेना चाहिए।"
- फ़्रेडरिक नीत्शे


"तेरे हौंसलों में , ना कोई कमी रहे
अपनी मेहनत पर , तेरा यकीं रहे
छू लेना ,आस्मां की बुलंदी , मगर
तेरे पैरों के नीचे , हमेशा जमीं रहे
मगरूर ना होना कभी भूले से भी
इन आंखों में मुहब्बत की नमी रहे
मुश्किलों मे मायूस ना होना कभी
इरादों में हिम्मत, लबों पे हंसी रहे"

-यूनुस खान


"कहीं आँख ही ना बह जाये आसुओं में, बेहतर पागल ही कर दो, मुसलसल हँसते रहेंगे... क्यों सुने किस्से मोहब्बत के फिर, जब हर कहानी में आशिक ही मरते रहेंगे..."
- कान्हा कंबोज

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