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सोच-समझकर ही करें शहरों में जल का इस्तेमाल
5-6 minutes


#Business_Standard
दक्षिण भारत में कृषि क्षेत्रों और त्वरित विकास करते शहरों से होकर बहने वाली कावेरी और दक्षिण अफ्रीका के आधुनिक शहर केप टाउन के साथ कुछ ऐसी बातें हैं, जिनके तार एक दूसरे से जोड़े जा सकते हैं। केप टाउन फिलहाल जल संकट से गुजर रहा है और वहां के अधिकारियों ने चेतावनी जारी कर दी है कि शहर के जल स्रोत जल्द ही सूख जाएंगे।
उच्चतम न्यायालय ने फरवरी 2018 में कावेरी जल के आवंटन पर ऐतिहासिक निर्णय दिया था और इसके साथ ही लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर भी विराम लग गया। हालांकि इस निर्णय के बाद कुछ असुविधाजनक सवाल भी खड़े हो गए हैं, जो यह तय करेंगे कि शहर किस तरह जल का समझदारी और बुद्धिमता के साथ इस्तेमाल करेंगे।
उच्चतम न्यायालय ने कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण के निर्देश में बदलाव किए हैं और बेंगलूरु के लिए अतिरिक्त जल आवंटित करने का आदेश दिया है। यह तर्क दिया गया है कि बेंगलूरु ‘ज्ञान एवं बुद्धिमता’, खासकर सूचना-प्रौद्येगिकी और तेज व्यवसायिक गतिविधियों के लिहाज से एक प्रमुख केंद्र है। न्यायाधिकरण ने इस शहर को 1.75 अरब घन फुट (टीएमसी) जल आवंटित किया था, जिसे न्यायालय ने बढ़कार 6.5 टीएमसी कर दिया।
न्यायाधिकरण ने बेंगलूरु के लिए जल आवंटित करते वक्त निम्रलिखित बातों पर गौर किया था। इनमें पहला बिंदु यह था कि शहर को उतना ही पानी मिलेगा, जितनी इसकी वाजिब हिस्सेदारी बनती है। न्यायाधिकरण ने तय किया कि कावेरी बेसिन में शहर का केवल एक तिहाई हिस्सा आता है, इसलिए इसकी जल की एक तिहाई मांग की ही पूर्ति की जाएगी। उच्चतम न्यायालय ने यह तर्क पलट दिया और कहा कि बेंगलूरु जैसे शहर को इसकी भौगोलिक स्थिति से इतर अधिक पानी की जरूरत है।
न्यायाधिकरण का दूसरा तर्क था कि भूमिगत जल शहर की पानी की 50 प्रतिशत मांग पूरी करेगा। इस तरह, शहर को केवल 50 प्रतिशत जल ही नदी से आवंटित किया जाएगा। न्यायालय ने यह तर्क सिरे से खारित कर दिया और इसे अस्वीकार्य बताया।
बेंगलूरु एक ऐसे शहर का ‘मानक’ उदाहरण है, जो सब कुछ जानते-समझते और अपनी मर्जी से झील को बर्बाद कर रहा है। इन झीलों से बेंगलूरु को भूमिगत जल का स्तर बरकरार रखने में मदद मिलेगी और बारिश का जल सहेज कर रखने में आसानी होगी। दूसरी तरफ न्यायालय ने कहा कि बेंगलूरु को अपने झीलों की चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसे जल आपूर्ति के लिए भूमिगत जल पर निर्भर नहीं रहना होगा। जरूरत इस बात पर जोर देने की थी कि बेंगलूरु पहले अपने जल संसाधनों का इस्तेमाल करता और पानी की किल्लत होने पर कावेरी के जल पर विचार करता।
यह तर्क इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि कावेरी नदी से जल परिवहन बेंगलूरु के लिए महंगा सौदा साबित हो रहा है और यह इतना महंगा है कि लोग भूमिगत जल के इस्तेमाल की तरफ बढ़ रहे हैं। इस तरह, यह एक दोहरी फांस है। पहले तो शहर अपने स्थानीय जल स्रोतों की परवाह नहीं करेगा और इसके लोगों के पास इस स्रोत के अधिक से अधिक दोहन के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं रह जाएगा। एक बात पूरी तरह समझ लेनी चाहिए कि बेंगलूरु को इस जल आवंटन से फायदा नहीं हुआ है।
न्यायालय ने अपने आदेश में न्यायाधिकरण के तीसरे सिद्धांत को सही ठहराया। न्यायाधिकरण ने कहा कि शहर की पानी की मांग की गणना 20 प्रतिशत पर की जाएगी। दूसरे शब्दों में कहें तो शहर इतना ही पानी ‘इस्तेमाल’ करता है। शेष जल, जिसकी मांग और आपूर्ति की जाती है, वह अपशिष्टï जल के तौर पर बाहर निकलती है। यानी इसका उपभोग नहीं होता है। यह कहा जा सकता है कि शहर के पास इस अपशिष्टï जल को शुद्ध कर इसके दोबारा इस्तेमाल करने की योजना तैयार नहीं है। यही जल का गणित उल्टा पड़ जाता है। तमिलनाडु और इसकी राजधानी चेन्नई की शिकायत है कि कर्नाटक पर्याप्त पानी नहीं छोड़ रहा है और उनके हाथ केवल इस्तेमाल किया जल ही लग रहा है। यहां पर बेंगलूरु को अपना रवैया बदलने की जरूरत है।
न्यायालय ने कहा है कि आवंटन में पेय जल को सर्वाधिक प्राथमिकता दी जाएगी। कृषि एवं खाद्य क्षेत्र की पानी की मांग से भी इसे अधिक तवज्जो दी जाएगी। इससे कुछ नए विवाद खड़े हो सकते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत जैसे देश में ज्यादातर लोग कृषि क्षेत्र से रोजगार प्राप्त करते हैं, इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में जल का खूब इस्तेमाल होता है। पश्चिमी देशों में लोगों की खेती पर निर्भरता कम हो गई है और वे गांवों से शहरों की तरफ आ गए हैं। इससे जल का अब ज्यादातर इस्तेमाल शहरों और वहां के उद्योग-धंधों में होता है।




विशेष राज्य (Special status) का दर्जा किस आधार पर दिया जाता है और इसमें क्या सुविधाएँ मिलती हैं?
4-5 minutes


भारत के संविधान में लिखा है कि भारत एक राज्यों का संघ है. इस समय भारत में 29 राज्य और 7 केंद्र शासित प्रदेश हैं. इन सभी राज्यों को केंद्र सरकार की ओर से हर 5 साल के अन्तराल पर गठित किये जाने वाले वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर केंद्र के करों में हिस्सा दिया जाता है; जिसे राज्य अपने विकास कार्यों और राज्य मशीनरी को ठीक से चलाने के लिए खर्च करता है.
वित्त आयोग द्वारा दिए जाने वाले हिस्से से अलग केंद्र सरकार किसी राज्य को और अधिक वित्तीय सहायता देता है. वर्तमान में भारत के 29 राज्यों में से 11 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है और 5 अन्य राज्य इस दर्जे की मांग कर रहे हैं.
विशेष राज्य का दर्जा कैसे दिया जाता है?
वर्ष 1969 में पांचवे वित्त आयोग (अध्यक्ष महावीर त्यागी) ने गाडगिल फोर्मुले के आधार पर 3 राज्यों (जम्मू & कश्मीर, असम और नागालैंड) को विशेष राज्य का दर्जा दिया था. इन तीनों ही राज्यों को विशेष दर्जा देने का कारण इन राज्यों का सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक पिछड़ापन था. राष्ट्रीय विकास परिषद् ने राज्यों को विशेष दर्जा देने के लिए निम्न मापदंडों को बनाया है.

 जिस प्रदेश में संसाधनों की कमी हो
 कम प्रति व्यक्ति आय हो
 राज्य की आय कम हो
 जनजातीय आबादी का बड़ा हिस्सा हो
 पहाड़ी और दुर्गम इलाके में स्थित हो
 कम जनसंख्या घनत्व
 प्रतिकूल स्थान
 अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास स्थित होना
विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर क्या फायदा मिलता है?
किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर निम्न लाभ केंद्र सरकार की तरफ से प्राप्त होते हैं.
 1. विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को उत्पादन कर (Excise duty), सीमा कर(Custom duty), निगम कर (Corporation tax), आयकर (Income tax) के साथ अन्य करों में भी छूट दी जाती है.
 जिन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाता है उनको जितनी राशि केंद्र सरकार द्वारा दी जाती है उसका 90% अनुदान (grant) के रूप में और बकाया 10% बिना ब्याज के कर्ज के रूप में दिया जाता है. इसके अलावा अन्य राज्यों को केंद्र की आर्थिक सहायता का 70% हिस्सा कर्ज के रूप में (इस धन पर ब्याज देना पड़ता है) और बकाया का 30% अनुदान के रूप में दिया जाता है.
 यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि जो राशि केंद्र सरकार से राज्य सरकार को अनुदान के रूप में दी जाती है उस राशि को केंद्र सरकार को वापस लौटाना नही पड़ता है, लेकिन जो राशि उधार के तौर पर राज्यों को दी जाती है उस पर राज्य सरकार को ब्याज देना पड़ता है.
 केन्द्र के सकल बजट में नियोजित खर्च (planned expenditure) का लगभग 30% हिस्सा उन राज्यों को दिया जाता है जिनको विशेष श्रेणी के राज्यों में रखा गया है.
 विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को ऋण स्वैपिंग स्कीम और ऋण राहत योजनाओं का लाभ भी मिलता है.
 विशेष दर्जा प्राप्त जो राज्य; एक वित्त वर्ष में पूरा आवंटित पैसा खर्च नही कर पाते हैं उनको यह पैसा अगले वित्त वर्ष के लिए जारी कर दिया जाता है.
वर्तमान में किन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है?
मणिपुर , मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, असम, जम्मू & कश्मीर, नागालैंड
निम्न 5 राज्य विशेष राज्य के दर्जे को लेकर आंदोलित हैं:
1. बिहार, आन्ध्र प्रदेश ,राजस्थान, गोवा, ओडिशा
अन्य राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा क्यों नही मिल रहा है.
वित्त मंत्री अरुण जेटली का तर्क है कि 14 वें वित्त आयोग (Y.V रेड्डी के अध्यक्षता में गठित) की सिफारिशें सौंपी जा चुकी हैं; इसलिए अब इसकी सिफारिशें में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नही किया जा सकता है. इस कारण अब विशेष राज्य का किसी अन्य राज्य को नही दिया जा सकता है.

उम्मीद है कि लेख को पढने के बाद आप समझ गए होंगे कि विशेष राज्य का दर्जा किन राज्यों को दिया गया है, किस आधार पर दिया जाता है और जिन राज्यों के पास यह दर्जा है उनको क्या-क्या सुविधाएँ मिल रही हैं जो कि अन्य राज्यों को नही मिल रहीं हैं?








1) The Government of India constituted the Subordinate Services Commission on 4 th November 1975, which was subsequently re-designated as the Staff Selection Commission w.e.f. 26th September, 1977.




2) Staff Selection Commission is one of the largest recruiting agencies in the country in terms of number of applicants who apply for various posts in the Government of India



3) The Committee has been further informed by the Commission that as on 31.12.2017, there are 2220 court cases pending before various Courts in which SSC is a party.


4) The Government of India has proposed to introduce a Common Eligibility Test (CET) to shortlist candidates for vacancies of Group ‘B’ (Non-Gazetted) and below level posts in the Government of India. Through this exercise, the entire recruitment system would be revamped and rationalized in two distinct stages, i.e. 

(i) Tier-I - a Common Screening Test subsuming the preliminary Tier-I examinations conducted by all recruiting agencies of the Government of India, viz. SSC, Railways, Banking, etc; and 

(ii) Tier-II – the main Examinations to be conducted independently by the concerned recruiting agencies


5) To kick start the process under the revised dispensation, candidates would mandatorily have to register themselves on a dedicated portal developed by the National Career Services (NCS) of the Ministry of Labour & Employment, which would generate a unique ID for each candidate. CETs would be conducted at three levels: 

(i) Matriculation Level; 

(ii) Higher Secondary (10+2) Level; and 

(iii) Graduation Level. 

About 5 crore candidates are estimated to register for all the three levels of CETs making it the largest examination in the world.


6) It has been decided that in the Financial Year 2018-19, only one level of CETs, i.e. at the Graduation Level, would be conducted in February, 2019. In the successive year(s), all the three levels of examination would be conducted. 


7) The Government has proposal to make CET scores valid for a period of two years. The candidates would use their scores for appearing in Tier-II examinations, which would be conducted independently by the respective recruiting agencies. 


There is also scope for the CET scores to be used by State Governments / Public Sector Undertakings / Private Sector for recruitment of their manpower.



Click Here to Download the PDF of  Rajya Sabha Report No 95 Regarding CET for SSC from 2019 Onwards


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THE HINDU 15.03.2018 DELHI

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