वृन्दावन धाम दर्शन🙏🙏🙏🙏🙏🙏


Kanal geosi va tili: ko‘rsatilmagan, ko‘rsatilmagan
Toifa: ko‘rsatilmagan


उन्होंने नस देखि हमारी और बीमार लिख दिया,
रोग हमने पूछा तो वृंदावन से प्यार लिख दिया,
कर्जदार रहेगे उम्र भर हम उस वैद के जिसने दवा में,
श्री राधे कृष्ण नाम लिख दिया…
जय श्री राधेकृष्णा
Grup link 👉@VRINDAVANLOVE123

Связанные каналы

Kanal geosi va tili
ko‘rsatilmagan, ko‘rsatilmagan
Toifa
ko‘rsatilmagan
Statistika
Postlar filtri




बांके बिहारी मंदिर में मौसम के हिसाब से दर्शन के समय का पालन होता है। वैसे तो बांके बिहारी मंदिर सुबह 7:00 बजे खुल जाता है लेकिन दर्शन करने का समय मौसम के हिसाब से निशिचित किया जाता है। जिसका वर्णन इस प्रकार है

गर्मियों में बांके बिहारी मंदिर के दर्शन का समय : सुबह 8:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे, शाम 5:30 बजे – शाम 9:30 बजे तक
सर्दियों में बांके बिहारी मंदिर के दर्शन का समय : सुबह 8:45 बजे – दोपहर 1 बजे, शाम 4:30 बजे – शाम 8:30 बजे


बांके बिहारी जी के मंदिर में मंगला आरती साल में केवल एक दिन जन्माष्टमी को ही होती है। इस दिन बांके बिहारी जी के दर्शन सौभाग्यशाली को ही हो पाते हैं।


बांके बिहारी की मूर्ति मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को निधिवन स्थित विशाखा कुण्ड से प्रकट हुई थी। बांके बिहारी की प्राकट्य तिथि को हर साल विहार पंचमी के रूप में बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन वृंदावन में कई धार्मिक आयोजन होते है। बिहार पंचमी के दिन ही चरणामृत के स्थान पर भक्तों को पंचामृत बांटा जाता है


बांके बिहारी सिर्फ प्रेम के भूखे हैं। वहीं मान्यता है कि वे भक्त की भक्ति के वशीभूत हो जाते हैं। इसलिए इस मंदिर में आकर आंखें बंद करके पूजा नहीं की जाती, बल्कि बांके बिहारी की आंखों में आंखें डालकर उन्हें निहारा जाता है। कहा जाता है कि बांके बिहारी की मूर्ति में ऐसा आकर्षण है जो भक्त को अपनी ओर खींचता है। उसकी आंखों से स्वयं आंसू गिरने लगते हैं।


श्री बांके बिहारी जी की मूर्ति के आगे हर दो मिनट के अंतराल पर पर्दा लगाया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि उनकी छवि को लगातार प्रेमपूर्वक एक टक निहारते रहने से वे भक्त की भक्ति के वशीभूत होकर उसके साथ चले जाते हैं।


ऐसी मान्यता है जो भक्त बांके बिहारी के दर्शन करता है वह उन्हीं का हो जाता है. भगवान के दर्शन और पूजा करने से व्यक्ति के सभी संकट मिट जाते हैं . बांके बिहारी की पूजा में उनका श्रृंगार विधिवत किया जाता है. उन्हें भोग में माखन, मिश्री,केसर, चंदन और गुलाब जल चढ़ाया जाता है.


बांकेबिहारी की प्रकट होने की कथा- भगवान श्रीकृष्ण के भक्त स्वामी हरिदास जी वृंदावन में स्थित श्री कृष्ण की रासस्थली निधिवन में बैठकर भगवान को अपने संगीत से रिझाया करते थे. इनकी भक्ति और गायन से रिझकर भगवान श्री कृष्ण इनके सामने आ जाते.एक दिन इनके एक शिष्य ने कहा कि आप हमें भी भगवान कृष्ण के दर्शन करवाएं. इसके बाद हरिदास जी श्री कृष्ण की भक्ति में डूबकर भजन गाने लगे और राधा कृष्ण की युगल जोड़ी प्रकट हुई.श्री कृष्ण और राधा ने हरिदास के पास रहने की इच्छा प्रकट की लेकिन हरिदास जी ने कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं तो संत हूं. आपको लंगोट पहना दूंगा लेकिन माता को नित्य आभूषण कहां से लाकर दूंगा.भक्त की बात सुनकर राधा कृष्ण की युगल जोड़ी एकाकार होकर एक विग्रह रूप में प्रकट हुई. हरिदास जी ने इस विग्रह को बांके बिहारी नाम दिया.


इस मंदिर में बिहारी जी की काले रंग की प्रतिमा है. मान्यता है कि इस प्रतिमा में साक्षात् श्री कृष्ण और राधा समाए हुए हैं. इसलिए इनके दर्शन मात्र से राधा कृष्ण के दर्शन का फल मिल जाता है.प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को बांके बिहारी मंदिर में बांके बिहारी प्रकटोत्सव मनाया जाता है. वैशाख माह की तृतीया तिथि पर जिसे अक्षय तृतीया कहा जाता है उस दिन पूरे एक साल में सिर्फ इसी दिन बांके बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं. इस दिन भगवान के चरणों के दर्शन बहुत शुभ फलदायी होता है


Kri.Sa .., dan repost
इस मंदिर का निर्माण 1860 में हुआ था तथा यह राजस्थानी वास्तुकला का एक नमूना है. इस मंदिर के मेहराब का मुख तथा यहाँ स्थित स्तंभ इस तीन मंजिला इमारत को अनोखी आकृति प्रदान करते हैं. बांके बिहारी की यह छवि स्वामी हरिदास जी ने निधि वन में खोजी थी. स्वामी हरिदास जी भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे और उनका संबंध निम्बर्क पंथ से था. इस मंदिर का 1921 में स्वामी हरिदास जी के अनुयायियों के द्वारा पुनर्निर्माण कराया गया था.


Kri.Sa .., dan repost
बाके बिहारी नाम क्यों पड़ा आइये बताते है
बांके नाम कैसे पड़ा- बांके का अर्थ होता है तीन कोणों पर मुड़ा हुआ, जो वास्तव में बांसुरी बजाते भगवान कृष्ण की ही एक मुद्रा है. बांसुरी बजाते समय भगवान कृष्ण का दाहिना घुटना बाएं घुटने के पास मुड़ा रहता था, तो सीधा हाथ बांसुरी को थामने के लिए मुड़ा रहता था. इसी तरह उनका सिर भी इसी दौरान एक तरफ हल्का सा झुका रहता था.




आज हम दर्शन करेंगे हम सबके लाडले हमारे सब कुछ हमारे श्री बिहारी जी।।
ये है बिहारी जी के मंदिर की गलिया यहां आने के बाद माहौल पूरा बदल जाता है।। सब कुछ यहा राधे राधे हो जाता है।।
जय बिहारी जी की


यमुना रस रानी.. ♥️🥀 #VrindavanKiYaadein




हमारा सबसे बड़ा धन.........

संसार में जिनके पास भी श्रीराधाकृष्ण की प्रेमरूपी संपत्ति है, वही सर्वाधिक धनी हैं.

संसार की अन्य समस्त सम्पत्तियाँ, जिनके पीछे हम अज्ञानतावश भागते हैं और उन्हें अपने सुख का साधन समझने की भूल करते हैं, वे सब की सब नश्वर हैं.

संसारी ऐश्वर्य आदि को प्राप्त कर लेने पर हमको सुख मिलेगा, यह भ्रान्ति है.

इनमें तो स्थिरता ही नहीं है. आज है, कल नहीं है. वस्तुतः संसार में ऐश्वर्यवान व्यक्ति ही अधिक दुःखी दिखलाई पड़ते हैं.

जड़ पदार्थों की गुलामी हमारे मन-बुद्धि को को भी जड़ बना देती है.

इनसे आनन्द अथवा रस की प्राप्ति कभी भी नहीं हो सकती है.
यह सिर्फ कहने की ही नहीं, अपितु सबका व्यक्तिगत अनुभव है.

जड़-पदार्थों से संपन्न समृद्धशाली व्यक्तियों के हृदय में सुख नहीं है, शान्ति नहीं है, वे त्रस्त हैं और तनावों से घिरे हुए हैं.

आध्यात्म कहता है कि हमारा वास्तविक धन है भगवत्-प्रेम. वस्तुतः प्रेम ऐसी वस्तु है

जिसे भगवान् से भी बड़ा बताया गया है. इस प्रेम के अंडर में भगवान हो जाते हैं

प्रेम भगवान् को बाँध लेती है. जिनके पास भी यह दिव्य प्रेम होता है, वह ऐसा महानतम् धनी है

जिसके पीछे पीछे भगवान् घूमते हैं. ग्वालों के प्रेमाधीन कृष्ण घोड़ा बनकर सवारी कराते हैं,

यशोदा मैया से ऊखल बंध जाते हैं और गोपियों की छाछ के लिए नाचते हैं

और उनकी गालियों के लिए ब्रज की गली-गली मचलते फिरते हैं. यह प्रेमधन ही वास्तविक धन है.

यह लुटाने से लुटता नहीं, वरन् इस धन के धनी दूसरों को भी प्रदान कर सदा के लिए आनंदमय कर देते और यह धन प्रतिदिन बढ़ता रहता हैं.

इसके आगे सांसारिक ऐश्वर्य, जो ब्रम्हलोक तक विस्तृत है, सो भी नगण्य ही है. ब्रम्हा भी प्रेम की सिरमौर गोपियों की चरणधूलि की कामना करते हैं.

उस सबसे बड़े धन की प्राप्ति करने के लिए ही हमें साधना करनी है, यद्यपि वह कृपासाध्य है,

साधनसाध्य नहीं है तथापि उस कृपा की प्राप्ति के लिए हमें अपने अंतःकरण को निर्मल बनाना होगा, जिसके लिए उनके नाम, गुण, लीला, धाम आदि का परम निष्कामभावयुक्त होकर रूपध्यानपूर्वक संकीर्तन सबसे सरल साधन है.

यह संकीर्तन बड़े से बड़े पापत्माओं के पाषाण हृदय में भी भगवद्-रस का संचार कर देता है.

कलियुग में हरिनाम संकीर्तन ही सार है, और दूसरा कुछ सार नहीं है.

जय जय श्री राधे भक्तों


भगवान और भक्त.....
एक भक्त ईश्वर से
"मुझे जीवन भर सुखशांति चाहिये।"
ईश्वर ने तुरंत हां कर दी।
भक्त......"मुझे परिवार का भी जिंदगी भर सुख चैन चाहिये"।
ईश्वर ने तुरंत हां कर दी।
फिर
भक्त..."मुझे अपने रिश्तेदारों की भी सलामती चाहिये।"
ईश्ववर ने हां कर दी।
भक्त बहुत प्रसन्न हुआ
कहा .....मुझे मेरे जीवन में कोई दुःख तकलीफ नही चाहिये।
ईश्वर ने तुरंत हामी भर दी।
भक्त बोला... .."आपकी कोई शर्त ?"
ईश्वर हंसे और बोले ..
बस छोटी सी......
रोज सिर्फ एक घंटा
नाम सिमरन...।
भक्त बोला...
मैं ये नही कर सकता.।
ईश्वर बोले
"तेरे एक घंटा नाम सिमरन के बदले मैं
तुझे तेरे, तेरे परिवार, और रिश्तेदारों को उम्र भर सुख चैन खुशियां देने का वादा करता हूं।"
जिंदगी में तुझे कोई दुख दर्द तकलीफ नही होगी।
तुम हर टेंशन से मुक्त रहोगे।
भक्त बोला...
ना बाबा ना, मैं एक घंटा नाम सिमरन नही कर सकता.
ईश्वर बोले......
एक बार फिर सोच लो।
भक्त.."नहीं होगा।
तब से आज तक ये इंसान दुख दर्द तकलीफें भुगत रहा है।
वो नाम दान तो ले लेता है।
ईश्वर से वादा भी करता है...दावा तक करता है।
पर सिर्फ एक घंटा
नाम सिमरन नही कर सकता।
ईश्वर कहते है...
"यह इंसान भी अजीब है..
ढाई घंटे फिल्म देख सकता है।
ढाई घंटे डाक्टर के पास जाकर लाईन में बैठ सकता है।
ढाई घंटे योगा तक कर सकता है, अपनी तबियत ठीक करने के लिये।
पूरा पूरा दिन ट्रेन में सफर कर सकता है।
पार्टियों में घंटों टाईम-पास कर सकता है।"
लेकिन.................
*जो ईश्वर मात्र एक घंटा नाम सिमरन के बदले मनुष्य के हर दुख दर्द तकलीफ संकट बीमारियां तक दूर करने की गारंटी देता हैं।जिंदगी में खुशियां ही खुशियाँ लाने का वादा करता है। उसकी यह छोटी सी शर्त इस इंसान को मंजूर नहीं है।*
शायद...........
इसी वजह से ये इंसान आज, बहुत कुछ, भुगत रहा है।
.....हो सके तो नाम सिमरन
जरुर करें।
अपने लिए अपनी आत्मा के कल्याण के लिए एक बार तो ईश्वर की और चलो
ईश्वर ही सार है , बाकि सब बेकार है

जयश्रीराधे सभी साधकजनों को




विश्वास किसी पर इतना करो कि वो तुम्हे छलते समय खुद को दोषी समझे और
प्रेम किसी से इतना करो कि उसके मन में
सदैव तुम्हे खोने का डर बना रहे…!!



━━━━✧❂✧━━━━


""मदन मोहन""
मंदिर वृन्दावन परिक्रमा मार्ग में मदन मोहन मंदिर स्थित है। यह मंदिर आज से 515 वर्ष पुराना है और इस मंदिर का एक अलग ही महत्व है। मदन मोहन मंदिर के सेवायत पुजारी अनादि मोहनदास ने मंदिर का इतिहास बताते हुए कहा कि इस मंदिर की नीव वह आज से 515 वर्ष पहले रखी गयी। कहा जाता है कि मदन मोहन जी का जन्म यमुना जी से हुआ था।

20 ta oxirgi post ko‘rsatilgan.

265

obunachilar
Kanal statistikasi