प्राचीन वैदिक सैद्धांतिक ज्ञान📚


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ब्रह्मचर्य dan repost
*RTI में खुलासा - Vaxइन मे गाय के रक्त का प्रयोग हुआ है।*

जो हिन्दूओ को भरोषा नही होता कि vaxइन मे गाय के बछड़े का खून है और जो फिर भी बेपरवाह होकर गौद्रोही बन लगा रहे है वो लोग इस वीडियो को सरकार तक ले जाकर इस RTI पर प्रतिक्रिया लें कि क्यों राम मंदिर को बनाने का ढोंग करने वालो ने भगवान राम कृष्ण के लोगो को गाय का रक्त पिला दिया...😡

https://youtu.be/2sVFoKEkcvo


सनातन संचयन dan repost
बहुत धर्म प्रचारक देखे होंगे परन्तु ऐसा प्रचारक देखा है?
देखो भाईयों, यह है आर्य समाज का स्वर्णिम गौरवमयी इतिहास ! वो आर्यों को नमाजी कहते हैं 😐 परंतु आर्य तो धर्म रक्षा के लिए अपना सर्वस्व वार देते है 😊

भाई की मृत्यु हो गई परंतु उसी क्षण शास्त्रार्थ के लिए चले गए

यही है तप , यही है त्याग , यही है संघर्ष, यही है समर्पण, यही है उत्साह, यही है धर्म प्रेम।

पंडित जी को कोटि कोटि नमन

महापुरुषों के ऐसे वृतांत जानने के लिए
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Vaidic Physics dan repost


Vaidic Physics dan repost
महाराणा प्रताप की जयन्ती पर दर्द भरा सन्देश

देशभक्तशिरोमणि, अमित पराक्रमी, राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक, स्वाधीनता के क्रान्तिकारियों के प्रेरणास्रोत महाराणा प्रताप की जयन्ती पर सभी देशभक्तों को हार्दिक शुभकामनाएँ।

हे वीरवर! आज आपका भारत विदेशी दासता के पाश में पड़ा क्रन्दन कर रहा है। माँ भारती के दुःख को समझने वाला आज कोई नहीं हैं। वर्ल्ड ऑर्डर के नाम पर भारत पुनः उन्हीं का दास बन गया है, जो 1947 में भारत छोड़ने का अभिनय करके यहाँ से गये थे और अपने मानसपुत्रों को सत्ता का हस्तान्तरण कर गये थे। आज वे और प्रबल एवं चालाक होकर ऐसे उभरे है कि हमारी संसद वर्ल्ड ऑर्डर के साम्राज्य का तालियों से स्वागत कर रही है।

हे वीर! एक वर्ल्ड ऑर्डर का स्वप्न लेकर सिकन्दर यहाँ आया था परन्तु यहाँ आचार्य चाणक्य और उनके शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य जैसे देशभक्त महान् पुरुषों ने उसे धूल चटा दी। ऐसा ही वर्ल्ड ऑर्डर का स्वप्न लेकर मुगल बाबर, अकबर व औरंगजेब आये थे परन्तु आप, आपके पूर्वजों व वंशजों के अतिरिक्त गुरु गोविन्दसिंह जी एवं छत्रपति शिवाजी महाराज ने उनको चुनौती दी। अगणित कष्ट सहे परन्तु उनके ऑर्डर को स्वीकार नहीं किया। उसके पश्चात् ईष्ट इण्डिया का वर्ल्ड ऑर्डर आया, उसको चुनौती देने में हजारों वीर वीरांगना बलिदान हो गये। पुनः ब्रिटिश शासन का वर्ल्ड ऑर्डर आया, उसने हमें लूटा, यातनाएं दी, लाखों भारतीय क्रान्तिकारियों ने अपने प्राण आहुत कर दिये। अब उन्होंने बड़ी चतुराई से नये ढंग से वर्ल्ड ऑर्डर लाया है। उसके नेता बदल गये हों, परन्तु वे सभी एक ही विचारधारा के लोग हैं और हमारा देश भी अब ऐसा दास बन गया है, जहाँ कोई भी इस वर्ल्ड ऑर्डर के विरुद्ध बोलने का साहस नहीं कर रहा। सभी भयभीत हैं। आज हमें दास बनाने वाले दूर बैठे ही हम पर बड़ी सहजता से शासन कर रहे हैं। हमारी सरकारें उन्हीं के आदेशों का क्रियान्वयन कर रही हैं और हम भारतीय स्वयं को स्वतन्त्र, सम्प्रभु एवं आत्मनिर्भर मानने का भ्रम पाले बैठे हैं, तब इस वर्ल्ड ऑर्डर को दासता कहने वाले कहाँ से आयेंगे?

हे वीर प्रताप! आप तो अमर हो गये परन्तु आपका यह देश आज अनाथ जैसा दिखाई दे रहा है, जिसे वर्ल्ड ऑर्डर की दासता स्वीकार करने के अतिरिक्त कोई विकल्प दिखाई नहीं देता। सभी मृत स्वाभिमान, भीरु एवं बौद्धिक दास दिखाई देते हैं। कोई स्वाभिमानी होगा भी, तो उसकी कोई सुनने वाला नहीं।

- आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक


*कुछ बडे बडे झूठ-*

*1.सृष्टि अपने आप बनी है इसे बनाने वाला कोई परमात्मा नहीं।*

*2.शरीर अपने आप चल रहा है इसे चलाने वाली कोई आत्मा नहीं।*

*3.आत्मा परमात्मा व पुनर्जन्म काल्पनिक बातें हैं।*

*4.वेद ईश्वर प्रदत्त ज्ञान नहीं है ये मनुष्यों द्वारा बनाये हुये हैं।*

*5.ईश्वर दुष्टों का संहार करने के लिये अवतार लेता है।*

*6.ईश्वर दूर कहीं गोलोक, विष्णु लोक, शिवलोक, बैकुंठ वा चौथे सातवें आसमान में रहता है वहीं से सब सृष्टि का संचालन करता है।*

*7.राम,कृष्ण,महावीर, गौतमबुद्ध,मुहम्मद, ईसा,यहोवा,कबीर,नानक ईश्वर वा ईश्वर के अवतार थे।*

*8.अल्लाह, परमात्मा वा देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिये गाय,भैंस,ऊंट बकरों की बलि देना धर्म है।*

*9. किसी पूजापाठ,अनुष्ठान, गंगा स्नान, तीर्थ यात्रा वा प्रायश्चित करने से ईश्वर पापों को क्षमा कर देता है।*

*10.मांस,अंडा,शराब राक्षसों का ही नहीं मानवों का भी भोजन है।*

*11. हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख,ईसाई,जैन,बौद्ध आदि धर्म हैं और ये ईश्वर प्राप्ति के भिन्न भिन्न मार्ग हैं।*

*12. यज्ञ से वातावरण दूषित होता है,ऋषिमुनि यज्ञों में बलि देते थे और मांस खाते थे।

जो जो लोग इतने बडे बडे झूठ बोलते हैं वे न्यायधीशों के न्यायाधीश, निराकार, सर्वव्यापक परमात्मा द्वारा अवश्य ही दण्डित किये जायेंगे,उन्हें पशुपक्षियों की योनियों में पड कर दारुन दु:ख भी उठाने पड सकते हैं।


ईश्वर आत्मा प्रकृति dan repost
आज का वेद मंत्र






सनातन संचयन dan repost
“ केवल धनसंचय में रहना, विषयभोग सागर में बहना।
यह अन्धों की दौड़ मानव, ईश्वर से संग जोड़।। ”

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ईश्वर आत्मा प्रकृति dan repost
अगर आपको हिन्दी के कोई शब्द कठिन लगते हैं या समझ में नहीं आते तो इस लिंक पर जाकर उस शब्द का अर्थ देख सकते हो ☝️☝️




अक्षय आर्य dan repost
8:25 पर चालू हो जाएगी




ईश्वर आत्मा प्रकृति dan repost
आज का वेद मंत्र
यजुर्वेद मंत्र (१,२)
@ishwar_atma_prakriti


ईश्वर आत्मा प्रकृति dan repost
यजुर्वेद मंत्र (१,१)
@ishwar_atma_prakriti




सनातन संचयन dan repost
मैक्समूलर और ऋषि दयानन्द।

प्रस्तुति - आशीष विद्यार्थी

फ्रेंडिच मैक्स मूलर एक जर्मन निवासी जो ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कर्मचारी थे । भारतीय विचारधारा को इसाईयत में परिवर्तन करने के लिए इनका एक अहम योगदान था। अपने इस कार्य को अंजाम देने के लिए एक सबसे प्रचलित नीति का सहारा लिया, किसी भी संस्कृति को बर्बाद करना हो तो उसके मूल उसके इतिहास को बदला जाए उसके धार्मिक सांस्कृितिक मूल्यों को नष्ट किया जाए।इसी प्रयास में मैक्समास्तर ने वेदो को अपने
षड़यंत्र का आधार बनाया क्योंकि वेदो के अनर्थकारी भाष्य (सायन महिधर आदि प्रचलित थे जो किसी भी विधर्मी के लिए सनातन संस्कृति पर प्रहार करने के लिए पर्याप्त हैं) सायन महिधरआदि की शैली में मैक्सम्बलर ने वेदों का अनर्थकारी भाष्य किया वह अपनी पत्नी को इस विषय में लिखता हैं-

"This edition of mine and the translation of the Veda will, hereafter, tell to a great extent on the fate of India. It is the root of their religion and to show them what the root is, I feel sure, is the only way of uprooting all that has sprung from it during the last three thousand years." (Life and Letters of Frederick Maxmuller, Vol. I, Chap. XV, p. 34 )

अर्थात् 'मेरा यह संस्करण और वेद का अनुवाद भारत के भाग्य को दूर तक प्रभावित करेगा। यह उनके धर्म का मूल है और उन्हें यह दिखा देना कि वह मूल कैसा है, गत तीन हजार वर्षों में इससे उत्पन्न होनेवाली सब बातों को समूल उखाड़ने का एकमात्र उपाय है।'

इस पत्र से स्पष्ट हैं की मैक्समूलर की क्या मनोदशा रही होगी ।इसके साथ हमे यह भी जानने की आवश्यकता है की उसकी वेदों के प्रति क्या विचारधारा थी सायन के भाष्य और ऋषि दयानन्द के भाष्य के बाद।

अपनि पुस्तक "India What can it teach us" के पृष्ठ 57 पर लिखता है - "That the veda is Full of childish, silly and Monstrous Conceptions, Who would deny? अर्थात वेद बचकाना, मूर्खतापूर्ण और राक्षस्वत,विकराल, नितान्त असंगत बातों का भरपूर है इससे कोन इनकार कर सकता है ?

इसी प्रकार मद्रास क्रिश्चियन सोसायटी की ओर से प्रकाशित "Vedic Hinduism" में मैक्स मूलर ने लिखा "I remind you again that the Vedas contain a great deal of what is childish and foolish" अर्थात मैं एक बार फिर याद दिलाता हूं कि वेदों में बहुत सी बचकाना और मूर्खतापूर्ण बातें भरी पड़ी है। एक और स्थान पर-"a large number of vedic hymns are childish in the extreme, tedious,low and common place." अर्थात वैदिक सुक्तो की एक बड़ी संख्या बिल्कुल बचकानी, जटिल, निकृष्ट और अत्यंत साधारण है"(chips from a German workshop (Ed.1866,p.27)

आपने उपर्युक्त उद्धरण में देखा कैसे मैक्स मूलर वेदों की निंदा कर रहा है। यह सब का मूल मध्यकालीन आचार्यों का वेद भाष्य और उनकी पूरी प्रक्रिया है यदि पाश्चात्य विद्वानों के समक्ष शायद वह महीधर आदि के भाष्य ना होते तो यह वेदों के विषय में यह अनर्थ न कर पाते न साहस कर पाते ना अपने षड्यंत्र को अंजाम दे पाते।शुद्ध यथार्थ भाष्य यदि मैक्स मूलर के समक्ष होते तो उसकी वेदों के प्रति कुछ और ही धारणा होती। इसकी तुष्टिकरण के लिए मैक्स मूलर के निम्न वाक्य ऋषि दयानंद के भाषा के ऊपर प्रस्तुत है- "to Swami Dayanand everything contained in the Vedas was not only perfect truth, but he went up one step further and by their interpretation succeeded in pursuing others that everything worth knowing-even the most recent inventions of modern science where alluded to in the Vedas. Steam engines, electricity, telegrafi and wireless microgram where shown to have been known at least in the germs to the poets of the Vedas." अर्थात"स्वामी दयानंद की दृष्टि में वेदों में पूर्ण सत्य का ही प्रतिपादन किया गया है। इतना ही नहीं, वह एक कदम और आगे बढ़े और उनकी व्याख्या द्वारा उन्होंने औरों को भी यह विश्वास दिलाने में सफलता प्राप्त की कि जो कुछ भी ज्ञातव्य है, जिसमें भाप का इंजन, बिजली, तार, बेतार आदि भी सम्मिलित है, वर्तमान विज्ञान के इन सब नवीनतम आविष्कारों का भी वैदिक ऋषि यों को ज्ञान था।

इस लेख से आपको स्पष्ट हो गया होगा कि ऋषि दयानंद सरस्वती जी के वेद भाष्य ने एक ऐसे पुरवाग्राही जो कभी वेदों की निंदा ना करते थकता था को भी वेदों में सब सत्य विद्याओं को मानने पर विवश कर दिया।

~ आशीष विद्यार्थी
( सनातन संचयन )

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मेरे आर्यसमाज मे होने के बाद हुए फायदों की लिस्ट-
एक बार जरुर पढ़े,सारे भ्रम दुर हो जायेगा, आत्मबल बढ़ेगा

1- किसी भूत, प्रेत, चुड़ैल, डाकिनी, भटकती आत्मा, पीपल, बरगद से अब डर नहीं लगता।
2- जादू टोने टोटके किया कराया का डर ख़त्म हो गया है।
3- बिल्ली या नेवले के रास्ता काट जाने पर रास्ता बदलना नहीं पड़ता।
4- घर से निकलते ही छींक आने पर या खाली बाल्टी देख कर वापस नहीं लौटना पड़ता।
5- राहू केतु शनि की साढ़े साती के नाम पर कोई मुझे लूट नहीं सकता।
6- हर दुसरे तीसरे दिन व्रत-त्यौहार के नाम पर भूखों मरना नहीं पड़ता।
7- अपने किये अच्छे कामों का श्रेय खुद लेता हूँ और गलतियों को हरि इच्छा न मान कर आगे दोहराने से परहेज करता हूँ।
8- कोई भी काम शुरू करने के लिए शुभ मुहूर्त निकलवाने की जरूरत नहीं पड़ती।
9- 11, 13, 21, 51, जैसी संख्याओं को शुभ अशुभ नहीं मानना पड़ता।
10- सप्ताह के किसी दिन को शुभ अशुभ नहीं मानना पड़ता।
11- सुबह सुबह अखबार में राशिफल देख कर अपने दिन का शेड्यूल नहीं बनाना पड़ता।
12- अपने माता पिता के मरने का इंतजार नहीं करता बल्कि उनके जीते जी ही सेवा सुश्रुषा करके उनका श्राद्ध तर्पण करता हूँ।
13- किसी को भी जाति, लिंग, रंग, क्षेत्र, भाषा, सम्पन्नता के आधार पर अलग नहीं समझता। इंसान को सिर्फ इंसान समझता हूँ।
और सबसे ख़ास
14- अपने परमेश्वर पर पक्का विश्वास होने के कारण अलग अलग मत पन्थ सम्प्रदायों के भगवानों और पीर दरगाहों के बीच भटकना नहीं पड़ता।

परमेश्वर की भक्ति करता हूँ और अच्छे कार्य करता हूँ। परमेश्वर भी अपनी कृपा बरसाने में कोई कसर नहीं छोड़ता।

लेकिन आर्य होने के कुछ नुकसान भी हैं :)

1. सबसे बड़ा नुकसान तो यही है कि मेरे धरती से दूर बैकुंठ/जन्नत/हेवन का टिकट कैंसिल हो गया।
2. मेरे पापों के क्षमा होने की कोई सम्भावना न होने के कारण पाप करने की सोचता भी नहीं हूँ।
3. ईश्वर को रिश्वत का लालच देकर मनचाहे वर मन्नत पूरी होने का भी कोई चांस नहीं।
4. आर्य होने के नाते देश, धर्म, समाज और पर्यावरण के प्रति कुछ जिम्मेदारियाँ हैं जिन्हें पूरा करना पड़ता है।

हा हा हा
ये व्यंग्यरूप में कहा ... ये नुकसान नहीं ये भी फायदे ही तो हैं।


१. ईश्वर एक है, अनेक नहीं

ईश्वर एक है, अनेक नहीं-वेद और वेदानुकूल सभी ग्रंथों में ऐसा ही लिखा है। एक ईश्वर ही अनेक नामों से पुकारा गया है। प्रत्येक नाम उसके किसी न किसी गुण को प्रकट करता है। जैसे -
ब्रह्म - सबसे बड़ा।

ब्रह्मा - सब जगत् को बनाने वाला।

शिव - कल्याण स्वरूप और कल्याण करने वाला।

विष्णु - चर और अचर सब जगत् में व्यापक।

रुद्र - दुष्ट कर्म करने वालों को दण्ड देकर रुलाने वाला।

गणेश - सब का स्वामी और पालन करने वाला।

पिता - सब की पालना और रक्षा करने वाला।

देव - विद्वान् और विद्या आदि देने वाला।

यम - सब प्राणियों को न्यायपूर्वक यथायोग्य कर्मफल देने वाला।

भगवान - ऐश्वर्यवान ।

चन्द्र - आनन्द स्वरूप और सबको आनन्द देने वाला।

ओ३म्-यह शब्द तीन अक्षरों अ, उ, म् से बना है। अ+उ = ओ। ओ और म् के बीच में लिखा '३' ओम् के उच्चारण को लम्बा करने का (प्लुत का) निर्देश देता है।

अ - विराट्, अग्नि, विश्व आदि।

उ - हिरण्यगर्भ, वायु, तैजस आदि।

म् - ईश्वर, आदित्य, प्राज्ञ आदि।

विराट् - जो बहुत प्रकार के जगत् को प्रकाशित करे।

अग्नि - ज्ञान स्वरूप सर्वज्ञ।

विश्व - जो आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु में प्रविष्ट हुआ है।

हिरण्यगर्भ - जो सूर्य आदि तेज वाले पदार्थों का उत्पत्ति तथा निवास स्थान है।

वायु - जो सब चराचर जगत् का धारण, जीवन और प्रलय करता है।

तैजस - जो स्वयं प्रकाशस्वरूप तथा सूर्य आदि तेजस्वी लोकों का प्रकाश करने वाला है।

ईश्वर - सामर्थ्यवान् सभी ऐश्वर्य सम्पन्न ।

आदित्य - जिसका विनाश कभी न हो।

प्राज्ञ - जो सब चराचर जगत् के व्यवहार को यथावत् जानता है।

ईश्वर के सब नामों में 'ओम्' सर्वोत्तम नाम है क्योंकि इससे उसके सबसे अधिक गुण प्रकट होते हैं। यही ईश्वर का प्रधान और निज नाम है। अन्य सभी नाम गौण हैं।

ओ३म् खं ब्रह्म। (यजुर्वेद ४०, १७)

अर्थ - आकाश के समान व्यापक, सबसे बड़ा, सब जगत का रक्षक ओ३म् है।

ओ३म् क्रतोस्मर। (यजुर्वेद)

अर्थ - ऐ कर्मशील मनुष्य ! ओ३म् को याद रख।

ओम् इति एतद् अक्षरम् उद्गीथम् उपासीत। (छान्दोग्योपनिषद्)

अर्थ - ओम् जिसका नाम है और जो कभी नष्ट नहीं होता उसी की उपासना करनी योग्य है, और किसी की नहीं।

ओम् इति एतद् अक्षरम् इदम् सर्वं तस्य उपव्याख्यानम्। (माण्डूक्योपनिषद)

अर्थ - वेदादि सब शास्त्रों में परमेश्वर का प्रधान और निज नाम 'ओम्' को कहा गया है।

सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति तपांसि सर्वाणि च यद् वदन्ति। यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण ब्रवीमि ओम् इति एतत्॥ (कठोपनिषद)

अर्थ - सारे वेद जिस पद का वर्णन करते हैं, जिसे जानने के लिए सब तप किए जाते हैं, जिसकी चाहना में यति लोग ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, वह पद संक्षेप में तुझे बताता हूँ, वह पद ओम् है।

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