साधनात्मक उत्थान
जीवन में साधनात्मक उत्थान के लिए आवश्यक है कि सात्विक गुणों को प्रखर किया जाए।इस शरीर में विकार काम, क्रोध, मद, लोभ, मत्सर और अहंकार है, और यही ऊर्जा के भी रूप हैं।इनके नकारात्मक स्वरूप से ग्रस्त व्यक्ति ईर्ष्यालु एवं उसमें सहनशीलता का अभाव होता है।उसका मन हमेशा अशान्त रहता है।वस्तुतः मनुष्य की सकल पीड़़ाओं का निवारण और उसके मन का शुद्धिकरण उस समय आरंम्भ होता है ,जब उसके अंदर सत्व जाग्रत होता है।सत्वगुण के प्रखर होने पर ही तमस समाप्त होने लगता है।जब सत्वगुण बढ़ता है तो बुद्धि धर्म में स्थित होती है।सतोगुणी बुद्धि धर्म एवं यज्ञ में अनायास ही प्रवृत्त होती है। इस देह में कौन सा गुण अधिक प्रबल है इसको कैसे जाने ? शास्त्र के अनुसार सत्व गुण सूक्ष्म प्रकाशक, स्वच्छ, निर्मल है।सत्वगुण आनन्दानुभूति को तीव्र करता है।इस गुण की प्रधानता होने पर सम्पूर्ण शरीर एवं मन हल्का रहता है ।अन्तःकरण और इन्द्रियों में चेतना एवं विवेक शक्ति उत्पन्न होती है।रजोगुण के बढ़ने से ईर्ष्या,द्वेष, स्पर्धा, द्रोह,लोभ प्रवृत्ति एवं विषय भोगों की लालसा बढ़ जाती है। जम्हाई अधिक आती है ।जिस व्यक्ति में तमोगुण प्रधान रहता है, उसका मन अशान्त रहता है। कर्तव्य -कर्मो में अप्रवृत्ति और प्रमाद अर्थात व्यर्थ चेष्टा ,भय, विवाद, कुटिलता, नास्तिकता प्रकट होता है।उसे नींद नहीं आती है एवं उसका चित्त भारी रहता है ।
@Sanatan 🚩
जीवन में साधनात्मक उत्थान के लिए आवश्यक है कि सात्विक गुणों को प्रखर किया जाए।इस शरीर में विकार काम, क्रोध, मद, लोभ, मत्सर और अहंकार है, और यही ऊर्जा के भी रूप हैं।इनके नकारात्मक स्वरूप से ग्रस्त व्यक्ति ईर्ष्यालु एवं उसमें सहनशीलता का अभाव होता है।उसका मन हमेशा अशान्त रहता है।वस्तुतः मनुष्य की सकल पीड़़ाओं का निवारण और उसके मन का शुद्धिकरण उस समय आरंम्भ होता है ,जब उसके अंदर सत्व जाग्रत होता है।सत्वगुण के प्रखर होने पर ही तमस समाप्त होने लगता है।जब सत्वगुण बढ़ता है तो बुद्धि धर्म में स्थित होती है।सतोगुणी बुद्धि धर्म एवं यज्ञ में अनायास ही प्रवृत्त होती है। इस देह में कौन सा गुण अधिक प्रबल है इसको कैसे जाने ? शास्त्र के अनुसार सत्व गुण सूक्ष्म प्रकाशक, स्वच्छ, निर्मल है।सत्वगुण आनन्दानुभूति को तीव्र करता है।इस गुण की प्रधानता होने पर सम्पूर्ण शरीर एवं मन हल्का रहता है ।अन्तःकरण और इन्द्रियों में चेतना एवं विवेक शक्ति उत्पन्न होती है।रजोगुण के बढ़ने से ईर्ष्या,द्वेष, स्पर्धा, द्रोह,लोभ प्रवृत्ति एवं विषय भोगों की लालसा बढ़ जाती है। जम्हाई अधिक आती है ।जिस व्यक्ति में तमोगुण प्रधान रहता है, उसका मन अशान्त रहता है। कर्तव्य -कर्मो में अप्रवृत्ति और प्रमाद अर्थात व्यर्थ चेष्टा ,भय, विवाद, कुटिलता, नास्तिकता प्रकट होता है।उसे नींद नहीं आती है एवं उसका चित्त भारी रहता है ।
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