भीगते आसमाँ से आँसू बरसने लगे हैं
जिनके साथ थे हर पल, उनसे मिलने को तरसने लगे है।
रूह का कोई मलबा, इधर गिरा कोई उधर गिरा
हम तो अपनी ही बूंदों से छिटकने लगे हैं।
मसला दर्द का होता तो सम्भाल लेते थोड़ा
कदम बिन पिये भी, उसके मय में बहकने लगे हैं
न कदर रही अब कोई जज्बात की जमाने में
मेरे आँसुओ को देखकर लोग, मुँह छिपाकर हँसने लगे हैं।
कई दरिया बना डाली जालिम ने, आग सीने में लगाकर
रातों में दिसम्बर के, काले विषैले सर्प से डंसने लगे हैं।
#MJ
@mj_verse