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महिलाओं द्वारा संविधान में योगदान को याद रखने के लिए हम “समान धर्म अधिकार” नामक एक संज्ञा (mnemonic) बना सकते हैं:
स - समानता की वकालत
हंसा मेहता और अमृत कौर ने संविधान में लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के लिए विशेष रूप से मौलिक अधिकारों में इसे शामिल करने का संघर्ष किया।
म - मजबूत समान नागरिक संहिता (यूसीसी)
उन्होंने यूसीसी को मौलिक अधिकारों का हिस्सा बनाने की मांग की। जब इसे निर्देशक सिद्धांतों में स्थानांतरित किया गया, तो उन्होंने इसे शासन के लिए मौलिक बनाने में योगदान दिया।
ध - धार्मिक स्वतंत्रता को चुनौती
महिलाओं ने धर्म की पूर्ण स्वतंत्रता का विरोध किया और बताया कि यह बाल विवाह, पर्दा प्रथा, बहुविवाह और सती जैसी कुप्रथाओं को बढ़ावा दे सकता है।
र - धर्मनिरपेक्षता की स्थापना
बेगम ऐजाज रसूल ने संविधान में धर्मनिरपेक्षता को महत्वपूर्ण बताया और महिलाओं के अधिकारों पर धर्म के नियंत्रण को सीमित करने का समर्थन किया।
अ - उन्नत निर्देशक सिद्धांत
महिलाओं के प्रयासों से निर्देशक सिद्धांतों को एक ऐसा कानूनी ढांचा प्रदान किया गया, जिसने बाद के 1980 के दशक के न्यायशास्त्र में सामाजिक न्याय की दिशा में मार्गदर्शन किया।
यह संज्ञा “समान धर्म अधिकार” महिलाओं की संविधान में भूमिका को सरल और यादगार तरीके से प्रस्तुत करती है।
महिलाओं द्वारा संविधान में योगदान को याद रखने के लिए हम “समान धर्म अधिकार” नामक एक संज्ञा (mnemonic) बना सकते हैं:
स - समानता की वकालत
हंसा मेहता और अमृत कौर ने संविधान में लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के लिए विशेष रूप से मौलिक अधिकारों में इसे शामिल करने का संघर्ष किया।
म - मजबूत समान नागरिक संहिता (यूसीसी)
उन्होंने यूसीसी को मौलिक अधिकारों का हिस्सा बनाने की मांग की। जब इसे निर्देशक सिद्धांतों में स्थानांतरित किया गया, तो उन्होंने इसे शासन के लिए मौलिक बनाने में योगदान दिया।
ध - धार्मिक स्वतंत्रता को चुनौती
महिलाओं ने धर्म की पूर्ण स्वतंत्रता का विरोध किया और बताया कि यह बाल विवाह, पर्दा प्रथा, बहुविवाह और सती जैसी कुप्रथाओं को बढ़ावा दे सकता है।
र - धर्मनिरपेक्षता की स्थापना
बेगम ऐजाज रसूल ने संविधान में धर्मनिरपेक्षता को महत्वपूर्ण बताया और महिलाओं के अधिकारों पर धर्म के नियंत्रण को सीमित करने का समर्थन किया।
अ - उन्नत निर्देशक सिद्धांत
महिलाओं के प्रयासों से निर्देशक सिद्धांतों को एक ऐसा कानूनी ढांचा प्रदान किया गया, जिसने बाद के 1980 के दशक के न्यायशास्त्र में सामाजिक न्याय की दिशा में मार्गदर्शन किया।
यह संज्ञा “समान धर्म अधिकार” महिलाओं की संविधान में भूमिका को सरल और यादगार तरीके से प्रस्तुत करती है।