संविधान समतावादी समाज को किस प्रकार बढ़ावा देता है?
संविधान के समतावादी समाज को बढ़ावा देने के उपायों को याद रखने के लिए एक सरल स्मरणीय सूत्र: “स.स.मा.न्य.”
• स: समतावादी दृष्टिकोण
(अनुच्छेद 38(2) और 39(सी) धन के संकेन्द्रण को कम करने और समानता सुनिश्चित करने पर बल देते हैं।)
• स: सकारात्मक कार्रवाई
(आरक्षण और असमानों के साथ असमान व्यवहार जैसी नीतियां ऐतिहासिक और सामाजिक असमानताओं को कम करने के लिए अपनाई गईं।)
• मा: मौलिक अधिकार और डीपीएसपी
(भाग III और IV स्वतंत्रता और अवसरों की समानता सुनिश्चित करते हैं, और आर्थिक असमानताओं को संबोधित करते हैं।)
• न्य: न्यायिक व्याख्या
(डीएस नाकारा बनाम भारत संघ (1982) और समथा बनाम आंध्र प्रदेश (1997) जैसे मामलों में समाजवाद और समानता के संवैधानिक मूल्य स्पष्ट किए गए।)
“स.स.मा.न्य.” = समतावादी दृष्टिकोण, सकारात्मक कार्रवाई, मौलिक अधिकार, और न्यायिक व्याख्या।
यह संविधान के समतावादी दृष्टिकोण को सरल और यादगार तरीके से प्रस्तुत करता है।
#Mnemonic in hindi
संविधान के समतावादी समाज को बढ़ावा देने के उपायों को याद रखने के लिए एक सरल स्मरणीय सूत्र: “स.स.मा.न्य.”
• स: समतावादी दृष्टिकोण
(अनुच्छेद 38(2) और 39(सी) धन के संकेन्द्रण को कम करने और समानता सुनिश्चित करने पर बल देते हैं।)
• स: सकारात्मक कार्रवाई
(आरक्षण और असमानों के साथ असमान व्यवहार जैसी नीतियां ऐतिहासिक और सामाजिक असमानताओं को कम करने के लिए अपनाई गईं।)
• मा: मौलिक अधिकार और डीपीएसपी
(भाग III और IV स्वतंत्रता और अवसरों की समानता सुनिश्चित करते हैं, और आर्थिक असमानताओं को संबोधित करते हैं।)
• न्य: न्यायिक व्याख्या
(डीएस नाकारा बनाम भारत संघ (1982) और समथा बनाम आंध्र प्रदेश (1997) जैसे मामलों में समाजवाद और समानता के संवैधानिक मूल्य स्पष्ट किए गए।)
“स.स.मा.न्य.” = समतावादी दृष्टिकोण, सकारात्मक कार्रवाई, मौलिक अधिकार, और न्यायिक व्याख्या।
यह संविधान के समतावादी दृष्टिकोण को सरल और यादगार तरीके से प्रस्तुत करता है।
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