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भेददण्डानुबन्धः स्यात्तदोपेक्षां समाश्नयेत्।
न चायं मम शक्नोति किञ्चित्कर्तुमुपद्रवम्।।
न चाहमस्य शक्नोमि तत्रोपेक्षां समाश्रयेत्।
अवज्ञोपहतस्तत्र राज्ञा कार्यो रिपुर्भवेत्।।
(अग्निपुराण २३४. ६, ७)
शत्रु के शिबिर में स्थित हृष्ट - पुष्ट पक्षी के पुच्छ भाग से उल्कापात और विविध उत्पातों से, मिथ्याचारों से, तथा दुष्प्रचारों से एवम् मनोवैज्ञानिक प्रयोगों से शत्रु के मनोबल को कपटपूर्ण ढङ्ग से क्षीण तथा विलुप्त करना माया है।
#YoungMen #SubhashitSanatan
न चायं मम शक्नोति किञ्चित्कर्तुमुपद्रवम्।।
न चाहमस्य शक्नोमि तत्रोपेक्षां समाश्रयेत्।
अवज्ञोपहतस्तत्र राज्ञा कार्यो रिपुर्भवेत्।।
(अग्निपुराण २३४. ६, ७)
शत्रु के शिबिर में स्थित हृष्ट - पुष्ट पक्षी के पुच्छ भाग से उल्कापात और विविध उत्पातों से, मिथ्याचारों से, तथा दुष्प्रचारों से एवम् मनोवैज्ञानिक प्रयोगों से शत्रु के मनोबल को कपटपूर्ण ढङ्ग से क्षीण तथा विलुप्त करना माया है।
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