खिड़की


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कब तक चलेगा खोखले शब्दों का कारोबार
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"मैं इस उमीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
अब इस के बा'द मिरा इम्तिहान क्या लेगा

ये एक मेला है वा'दा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर इक अपना रास्ता लेगा

मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चराग़ नहीं हूँ कि फिर जला लेगा

कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा

मैं उस का हो नहीं सकता बता न देना उसे
लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा

हज़ार तोड़ के आ जाऊँ उस से रिश्ता 'वसीम'
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला ले"

- वसीम बरेलवी


"कब तक पड़े रहोगे हवाओं के हाथ में
कब तक चलेगा खोखले शब्दों का कारोबार "

- आदिल मंसूरी


"क्यूँ चलते चलते रुक गए वीरान रास्तो
तन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो "

- आदिल मंसूरी


"मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर
उस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया "

- आदिल मंसूरी


"ये मोहब्बत की कहानी नहीं मरती लेकिन
लोग किरदार निभाते हुए मर जाते हैं "

- अब्बास ताबिश


"तू ने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँ
आँखों को अब न ढाँप मुझे डूबते भी देख "

- शकेब जलाली


"बद-क़िस्मती को ये भी गवारा न हो सका
हम जिस पे मर मिटे वो हमारा न हो सका "

- शकेब जलाली


"चेहरे पे मिरे ज़ुल्फ़ को फैलाओ किसी दिन
क्या रोज़ गरजते हो बरस जाओ किसी दिन "

- अमजद इस्लाम अमजद


"दर्द हल्का है साँस भारी है
जिए जाने की रस्म जारी है

आप के ब'अद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है

रात को चाँदनी तो ओढ़ा दो
दिन की चादर अभी उतारी है

शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले
कैसी चुप सी चमन पे तारी है

कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है
"
- गुलज़ार


Репост из: खिड़की
"सुख के लम्हे तक पहुँचते-पहुँचते, हम उन सब लोगों से जुदा हो जाते हैं जिनके साथ हमने दुःख झेलकर, सुख का स्वप्न देखा था।"
— निर्मल वर्मा


Репост из: खिड़की
"प्रेम बहुत रहस्यमय होता है पता नहीं चलने देता मिल रहा है या बिछड़ रहा है"
— काजल खत्री


"ये एक पेड़ है आ इस से मिल के रो लें हम
यहाँ से तेरे मिरे रास्ते बदलते हैं "


- बशीर बद्र


“ चाहे कोई दार्शनिक बने, साधु बने या मौलाना बने, अगर वो लोगों को अंधेरे का डर दिखाता है, तो ज़रूर वो अपनी कंपनी का टॉर्च बेचना चाहता है।"

- हरिशंकर परसाई


"अवसर तेरे लिए खड़ा है,
फिर भी तू चुपचाप पड़ा है।
तेरा कर्मक्षेत्र बड़ा है,
पल पल है अनमोल ।
अरे भारत!
उठ, आँखें खोल ॥"


-मैथिलीशरण गुप्त


"रहती है दिल में हमेशा एक घबराहट।

जाने क्या छूटा चला जाता है हाथों से।।"


-प्रद्युम्न


"इसी से जान गया मैं कि बख़्त ढलने लगे
मैं थक के छाँव में बैठा तो पेड़ चलने लगे

मैं दे रहा था सहारे तो इक हुजूम में था
जो गिर पड़ा तो सभी रास्ता बदलने लगे
"

- फ़रहत अब्बास शाह


"आंसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जाएगा
जहां प्रेम का चर्चा होगा मेरा नाम लिया जाएगा।

मान-पत्र मैं नहीं लिख सका
राजभवन के सम्मानों का
मैं तो आशिक रहा जनम से
सुंदरता के दीवानों का
लेकिन था मालूम नहीं ये
केवल इस ग़लती के कारण
सारी उम्र भटकने वाला, मुझको शाप दिया जाएगा।

खिलने को तैयार नहीं थीं
तुलसी भी जिनके आँगन में
मैंने भर-भर दिए सितारे
उनके मटमैले दामन में
पीड़ा के संग रास रचाया
आंख भरी तो झूमके गाया
जैसे मैं जी लिया किसी से क्या इस तरह जिया जाएगा।

काजल और कटाक्षों पर तो
रीझ रही थी दुनिया सारी
मैंने किंतु बरसने वाली
आंंखों की आरती उतारी
रंग उड़ गए सब सतरंगी
तार-तार हर सांस हो गई
फटा हुआ यह कुर्ता अब तो ज़्याद नहीं सिया जाएगा

जब भी कोई सपना टूटा
मेरी आंख वहां बरसी है
तड़पा हूं मैं जब भी कोई
मछली पानी को तरसी है,
गीत दर्द का पहला बेटा
दुख है उसका खेल खिलौना
कविता तब मीरा होगी जब हंसकर जहर पिया जाएगा।"


- गोपालदास नीरज


"आत्मा को अनुभव करने के लिए बस 'शांत' रहना आवश्यक है।"

- रमण महर्षि


"अब मैं कुछ कहना नहीं चाहता,
सुनना चाहता हूँ
एक समर्थ सच्ची आवाज़
यदि कहीं हो।
अन्यथा
इसके पूर्व कि
मेरा हर कथन
हर मंथन
हर अभिव्यक्ति
शून्य से टकराकर फिर वापस लौट आए,
उस अनंत मौन में समा जाना चाहता हूँ
जो मृत्यु है।
‘वह बिना कहे मर गया’
यह अधिक गौरवशाली है
यह कहे जाने से—
‘कि वह मरने के पहले
कुछ कह रहा था
जिसे किसी ने सुना नहीं।’


-सर्वेश्वरदयाल सक्सेना


"और अब सब कुछ आसान हो गया है
अपना जीवन सरल हो गया है
जानने की चिन्ता से
मुक्त हो गया है"


-कुँवर नारायण

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