रंगमंच जैसी जिंदगी हो गई है
कभी हंस के दिखाना है
कभी रो कर,
क्यूंकि बिना बात हंस भी नहीं सकते
दर्शकों को बुरा लग सकता
अरे! तुम टुच्चे कलाकार तुमको पटकथा के अनुसार ही भावभंगिमा रखनी है
जितना किरदार है उतना करो और चलते बनो
पर कलाकार के मन का क्या?
उसके अंदर का गुबार कब बाहर आयेगा?
कभी हंस के दिखाना है
कभी रो कर,
क्यूंकि बिना बात हंस भी नहीं सकते
दर्शकों को बुरा लग सकता
अरे! तुम टुच्चे कलाकार तुमको पटकथा के अनुसार ही भावभंगिमा रखनी है
जितना किरदार है उतना करो और चलते बनो
पर कलाकार के मन का क्या?
उसके अंदर का गुबार कब बाहर आयेगा?