हर जीत इक सिक्के के, दो पहलू हैं
इक जीत से हर जीत, निश्चित नहीं है
इक हार से दुनियां, कभी ख़त्म नहीं है
जीत के गुरूर पे इतराना, सही नहीं हैं
हार के ग़म से मुंह छुपाना, सही नहीं हैं
जीत का गुरूर पतन का, मार्ग बने हैं...
हार के डर से जीत का, मार्ग ही बने हैं
जीत पे भी जो विन्रम है, वहीं जीत है...
इक जीत से हर जीत, निश्चित नहीं है
इक हार से दुनियां, कभी ख़त्म नहीं है
जीत के गुरूर पे इतराना, सही नहीं हैं
हार के ग़म से मुंह छुपाना, सही नहीं हैं
जीत का गुरूर पतन का, मार्ग बने हैं...
हार के डर से जीत का, मार्ग ही बने हैं
जीत पे भी जो विन्रम है, वहीं जीत है...