मान से उज्जैन 23°11 अंश पर स्थित है। भौगोलिक गणना के अनुसार प्राचीन आचार्यों ने उज्जैन को शून्य रेखांश पर माना जाता है। कर्क रेखा भी यहीं से गुजरती है। देशांतर रेखा और कर्क रेखा यहीं एक-दूसरे को काटती है। रोहतक, अवन्ति और कुरुक्षेत्र ऐसे स्थल हैं, जो इस रेखा में आते हैं। देशांतर मध्यरेखा श्रीलंका से सुमेरु तक जाते हुए उज्जयिनी सहित अनेक नगरों को स्पर्श करती जाती है।
प्राचीन भारतीय मान्यता के अनुसार जब उत्तरी ध्रुव की स्थिति पर 21 मार्च से प्राय: 6 मास का दिन होने लगता है। प्रथम 3 माह के पूरे होते ही सूर्य दक्षिण क्षितिज से बहुत दूर हो जाता है। यह वह समय होता है, जब सूर्य उज्जैन के ठीक ऊपर होता है। उज्जैन का अक्षांश व सूर्य की परम क्रांति दोनों ही 24 अक्षांश पर मानी गई है। सूर्य के ठीक सामने होने की यह स्थिति संसार के किसी और नगर की नहीं है।
उज्जैन को अपनी इस भौगोलिक स्थिति के कारण प्राचीनकाल के खगोलशास्त्रियों ने कालगणना का केंद्रबिंदु माना था और यहीं से संपूर्ण भारत ही नहीं, दुनिया का समय भी निर्धारित होता था। राजा जयसिंह द्वारा स्थापित वेधशाला आज भी इस नगरी को कालगणना के क्षेत्र में अग्रणी सिद्ध करती है।
स्कंदपुराण के अनुसार ‘कालचक्र प्रवर्तकों महाकाल: प्रतायन:।’ इस प्रकार महाकालेश्वर को कालगणना का प्रवर्तक भी माना गया है। प्राचीन भारत की समय गणना का केंद्रबिंदु होने के कारण ही काल के आराध्य महाकाल हैं, जो भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। वराहपुराण में उज्जैन को शरीर का नाभि देश और महाकालेश्वर को अधिष्ठाता कहा गया है। महाकाल की यह कालजयी नगरी विश्व की नाभिस्थली है।
भारत के मध्य में स्थित होने के कारण उज्जैन को नाभिप्रदेश अथवा मणिपुर चक्र भी माना गया है। प्राचीन सूर्य सिद्धांत, ब्रह्मस्फुट सिद्धांत, आर्यभट्ट, भास्कराचार्य आदि ने उज्जयिनी के मध्यमोदय को ही स्वीकारा था। गणित और ज्योतिष के विद्वान वराहमिहिर का जन्म उज्जैन जिले के कायथा ग्राम में लगभग शक् संवत 427 में हुआ था। प्राचीन भारत के वे एकमात्र ऐसे विद्वान थे जिन्होंने ज्योतिष की समस्त विधाओं पर लेखन कर ग्रंथों की रचना की थी। उनके ग्रंथ में पंचसिद्धांतिका, बृहत्संहिता, बृहज्जनक विवाह पटल, यात्रा एवं लघुजातक आदि प्रसिद्ध हैं।
अत: क्यों नहीं प्राचीन भारतीय मानक समय को अपनाकर रात को समय बदलने की परंपरा को खत्म किया जाए या भारत में 4 से 5 टाइम जोन नियुक्त किए जाएं। यदि इस ओर ध्यान दिया गया और कोई एक ऐसा रास्ता निकाला जाए जिससे कि भारत में भी अलग- अलग टाइम जोन होंगे तो निश्चित ही इससे सक्रिय कार्य के घंटों पर बड़ा फर्क पड़ेगा जिसके कारण विकास की गति में तेजी आएगी।.
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प्राचीन भारतीय मान्यता के अनुसार जब उत्तरी ध्रुव की स्थिति पर 21 मार्च से प्राय: 6 मास का दिन होने लगता है। प्रथम 3 माह के पूरे होते ही सूर्य दक्षिण क्षितिज से बहुत दूर हो जाता है। यह वह समय होता है, जब सूर्य उज्जैन के ठीक ऊपर होता है। उज्जैन का अक्षांश व सूर्य की परम क्रांति दोनों ही 24 अक्षांश पर मानी गई है। सूर्य के ठीक सामने होने की यह स्थिति संसार के किसी और नगर की नहीं है।
उज्जैन को अपनी इस भौगोलिक स्थिति के कारण प्राचीनकाल के खगोलशास्त्रियों ने कालगणना का केंद्रबिंदु माना था और यहीं से संपूर्ण भारत ही नहीं, दुनिया का समय भी निर्धारित होता था। राजा जयसिंह द्वारा स्थापित वेधशाला आज भी इस नगरी को कालगणना के क्षेत्र में अग्रणी सिद्ध करती है।
स्कंदपुराण के अनुसार ‘कालचक्र प्रवर्तकों महाकाल: प्रतायन:।’ इस प्रकार महाकालेश्वर को कालगणना का प्रवर्तक भी माना गया है। प्राचीन भारत की समय गणना का केंद्रबिंदु होने के कारण ही काल के आराध्य महाकाल हैं, जो भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। वराहपुराण में उज्जैन को शरीर का नाभि देश और महाकालेश्वर को अधिष्ठाता कहा गया है। महाकाल की यह कालजयी नगरी विश्व की नाभिस्थली है।
भारत के मध्य में स्थित होने के कारण उज्जैन को नाभिप्रदेश अथवा मणिपुर चक्र भी माना गया है। प्राचीन सूर्य सिद्धांत, ब्रह्मस्फुट सिद्धांत, आर्यभट्ट, भास्कराचार्य आदि ने उज्जयिनी के मध्यमोदय को ही स्वीकारा था। गणित और ज्योतिष के विद्वान वराहमिहिर का जन्म उज्जैन जिले के कायथा ग्राम में लगभग शक् संवत 427 में हुआ था। प्राचीन भारत के वे एकमात्र ऐसे विद्वान थे जिन्होंने ज्योतिष की समस्त विधाओं पर लेखन कर ग्रंथों की रचना की थी। उनके ग्रंथ में पंचसिद्धांतिका, बृहत्संहिता, बृहज्जनक विवाह पटल, यात्रा एवं लघुजातक आदि प्रसिद्ध हैं।
अत: क्यों नहीं प्राचीन भारतीय मानक समय को अपनाकर रात को समय बदलने की परंपरा को खत्म किया जाए या भारत में 4 से 5 टाइम जोन नियुक्त किए जाएं। यदि इस ओर ध्यान दिया गया और कोई एक ऐसा रास्ता निकाला जाए जिससे कि भारत में भी अलग- अलग टाइम जोन होंगे तो निश्चित ही इससे सक्रिय कार्य के घंटों पर बड़ा फर्क पड़ेगा जिसके कारण विकास की गति में तेजी आएगी।.
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