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अग्निशेषमृणशेषं शत्रुशेषं तथैव च ।
पुन: पुन: प्रवर्धेत तस्माच्शेषं न कारयेत् ॥

भावार्थ :
यदि कोई आग, ऋण, या शत्रु अल्प मात्रा अथवा न्यूनतम सीमा तक भी अस्तित्व में बचा रहेगा तो बार बार बढ़ेगा ; अत: इन्हें थोड़ा सा भी बचा नही रहने देना चाहिए । इन तीनों को सम्पूर्ण रूप से समाप्त ही कर डालना चाहिए ।

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अपूज्या यत्र पूज्यन्ते पूज्यानां तु विमानना |
त्रीणि तत्र प्रवर्तन्ते दुर्भिक्षं मरणं भयं ||


अर्थ - उस देश मे जहां अपूजनीय व्यक्तियों का सम्मान और पूजा होती है और पूजनीय व्यक्तियों की अवमानाना होती है, वहां दुर्भिक्ष, अकाल मृत्यु तथा भय युक्त वातावरण , ये तीनों परिस्थितियां सदैव विद्यमान होती हैं |

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अभयं सर्वसत्वेभ्यो यो ददाति दयापरः ।
तस्य देहाद्विमुक्तस्य भयं नास्ति कुतश्चन ॥


जो दयालु सब प्राणियों को अभय देता है, उसे मृत्यु के पश्चात् कहीं से भी भय नहीं रहता ।

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यो ददाति सहस्त्राणि गवामश्व शतानि च ।
अभयं सर्वसत्वेभ्य स्तद्दानमिति चोच्यते ॥

जो हजारों गाय और सैंकडो घोडे देता है, और सब प्राणियों को अभय देता है, उसे दान कहते हैं ।

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यो ददाति सहस्त्राणि गवामश्व शतानि च ।
अभयं सर्वसत्वेभ्य स्तद्दानमिति चोच्यते ॥

जो हजारों गाय और सैंकडो घोडे देता है, और सब प्राणियों को अभय देता है, उसे दान कहते हैं ।

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वाचा च मनसः शौचं शौचमिन्द्रियनिग्रहः। सर्वभूतदया शौचमेतचछौचं परमार्थिनाम्॥

भावार्थ :

मन, वाणी को पवित्र रखना, इंद्रियों को निग्रह, सभी प्राणियों पर दया करना और दूसरों का उपकार करना सबसे बड़ी शुद्धता है ।

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भूताभयप्रदानेन सर्वान्कामानवामुयात् ।
दीर्घमायुः च लभते सुखी चैव सदा भवेत् ॥

प्राणियों को अभय देकर सब कामना प्राप्त होती है, दीर्घायुष्य और सदा सुख प्राप्त होता है ।

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ॐ सह नाववतु ।
सह नौ भुनक्तु ।
सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

May we all be protected. May the Lord nourish us and cause us to enjoy. May we work together with great energy.

May our intellect be sharpened and studies be brilliant.

May we never have hatred for each other. May there be peace(within me), peace(in nature), peace(in divine forces).

~Shaanti mantra; Krishna Yajurveda

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अधीरः कर्कशः स्तब्धः कुचेलः स्वयमागतः  |
एते  पञ्च  न  पूज्यन्ते व्रहस्पति समा यदि  ||

अर्थ =  अधीर, कटु भाषी, उद्दण्ड् , मलिन और फटे कपडे पहने हुए,  अनजान और बिना बुलाये आया हुआ', इन पांच प्रकार के व्यक्तियों  का आदर कभी नहीं करना चाहिये , चाहे वह  व्यक्ति देवगुरु वृहस्पति के संमान ही क्यों  न  हो  |

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धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पञ्चमः।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसे वसेत ॥

भावार्थ :
जहां कोई सेठ, वेदपाठी विद्वान, राजा और वैद्य न हो, जहां कोई नदी न हो, इन पांच स्थानों पर एक दिन भी नहीं रहना चाहिए ।

चाणक्यनीति श्लोक @subhahitmala

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