दिल को जलाने, प्रेम जगाने, सावन के इस मौसम में,
बारिश की ये बूंदे जब जब, मुझपर आके गिरती है,
बूंदे नही ये तेरे पायल की झनकार सी लगती है।
बारिश की ये बूंदे जब जब.......................
काश हो ऐसा, बस हम दोनों, सांझ समय और बरसती बूंदे,
एक दूजे में हम खो जाए, देखे बस ये बरसती बूंदे।
बांहों में हम बांहे डाले, एक दूजे को देखते जाए,
प्रेम की पावन पुस्तक पर हम, एक कहानी बन छा जाए।
लबो के तेरे मधु का प्याला, पीकर हम पागल हो जाए,
बांहों में भरकर तुझको, हम दो जिस्म एक जां हो जाए।
जानता हूँ ये एक स्वप्न है, मैं धरती और तू अम्बर है,
तेरी याद में मैं ना शायद, मेरी याद में तू पल पल है।
लेकिन ज़रा ये सोचो जब, सावन का मौसम आता है,
इंद्र भी अपना स्वर्ग छोड़कर, धरा से मिलने आता है।
आज अगर इकरार करोगी, दिल पर मेरे राज करोगी,
इतना प्यार मैं दूंगा की तुम, प्यार पे अपने नाज़ करोगी।
और अगर इनकार किया तो, बाद में खुद को कोसोगी,
मुझको पास ना पाकर, अपने मन ही मन ये सोचोगी।
कोई तो दिल था दुनिया में, जो नाम से मेरे धड़कता था,
हा, एक पागल लड़का था, जो मुझपर जान छिड़कता था।
प्यार अगर तू करती है तो, दुनिया से क्यों डरती है ?
और जो ना करती है फिर क्यों, आंख मिचौली करती है ?
बारिश की ये बूंदे जब जब......................
@Arun_1994