"ज़िन्दगी
जब कोई बात
स्वीकार कर लेती है
तो वो हाॅं नहीं कहती
खुशी-खुशी वो
उस काम में जुट जाती है
जिसे उसने
स्वीकार किया है
और जब सफलता के
शिखर पर पहुॅंचती है
तब रोम-रोम से
खुशी छलकाती है
पर फिर भी
वो हाॅं नहीं कहती
केवल
और केवल
स्वीकार करती है....।"
-अमर भोज
जब कोई बात
स्वीकार कर लेती है
तो वो हाॅं नहीं कहती
खुशी-खुशी वो
उस काम में जुट जाती है
जिसे उसने
स्वीकार किया है
और जब सफलता के
शिखर पर पहुॅंचती है
तब रोम-रोम से
खुशी छलकाती है
पर फिर भी
वो हाॅं नहीं कहती
केवल
और केवल
स्वीकार करती है....।"
-अमर भोज