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🟥🟧 तुलसीदास जी के दोहे
तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान।
भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण।।
तुलसी इस संसार में भांति भांति के लोग।
सबसे हस मिल बोलिए नदी नाव संजोग।।
तुलसी साथी विपति के विद्या विनय विवेक।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक।।
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए।
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए।।
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास।।
काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पन्थ।
सब परिहरि रघुवीरहि भजहु भजहि जेहि संत।।
करम प्रधान विस्व करि राखा।
जो जस करई सो तस फलु चाखा।।
काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान।।
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ और।
बसीकरण इक मन्त्र हैं परिहरू बचन कठोर।।
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहूँ जौं चाहसि उजिआर।।
अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति।
नेक जो होती राम से, तो काहे भव-भीत।।
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छोड़िये जब तक घट में प्राण।।
🚩सियावर रामचंद्र की जय🚩
🔺️🔺️🔺️| बृहस्पति | BRIHASPATI |
🟥🟧 JOIN- @lord_ram_status_videos
तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान।
भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण।।
तुलसी इस संसार में भांति भांति के लोग।
सबसे हस मिल बोलिए नदी नाव संजोग।।
तुलसी साथी विपति के विद्या विनय विवेक।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक।।
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए।
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए।।
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास।।
काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पन्थ।
सब परिहरि रघुवीरहि भजहु भजहि जेहि संत।।
करम प्रधान विस्व करि राखा।
जो जस करई सो तस फलु चाखा।।
काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान।।
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ और।
बसीकरण इक मन्त्र हैं परिहरू बचन कठोर।।
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहूँ जौं चाहसि उजिआर।।
अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति।
नेक जो होती राम से, तो काहे भव-भीत।।
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छोड़िये जब तक घट में प्राण।।
🚩सियावर रामचंद्र की जय🚩
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