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🌹 *चुभन....!* 🌹

*पुरानी साड़ियों के बदले बर्तनों के लिए मोल भाव करती एक सम्पन्न घर की महिला ने अंततः दो साड़ियों के बदले एक टब पसंद किया . "नहीं दीदी ! बदले में तीन साड़ियों से कम तो नही लूँगा ." बर्तन वाले ने टब को वापस अपने हाथ में लेते हुए कहा .*

*अरे भैया ! एक एक बार की पहनी हुई तो हैं.. ! बिल्कुल नये जैसी . एक टब के बदले में तो ये दो भी ज्यादा हैं , मैं तो फिर भी दे रही हूँ . नहीं नहीं , तीन से कम में तो नहीं हो पायेगा ." वह फिर बोला .*

*एक दूसरे को अपनी पसंद के सौदे पर मनाने की इस प्रक्रिया के दौरान गृह स्वामिनी को घर के खुले दरवाजे पर देखकर सहसा गली से गुजरती अर्द्ध विक्षिप्त महिला ने वहाँ आकर खाना माँगा...*

*आदतन हिकारत से उठी महिला की नजरें उस महिला के कपडों पर गयी.... अलग अलग कतरनों को गाँठ बाँध कर बनायी गयी उसकी साड़ी उसके युवा शरीर को ढँकने का असफल प्रयास कर रही थी....*

*एकबारगी उस महिला ने मुँह बिचकाया . पर सुबह सुबह का याचक है सोचकर अंदर से रात की बची रोटियाँ मँगवायी . उसे रोटी देकर पलटते हुए उसने बर्तन वाले से कहा -*

*तो भैय्या ! क्या सोचा ? दो साड़ियों में दे रहे हो या मैं वापस रख लूँ ! "बर्तन वाले ने उसे इस बार चुपचाप टब पकड़ाया और दोनों पुरानी साड़ियाँ अपने गठ्ठर में बाँध कर बाहर निकला...*

*अपनी जीत पर मुस्कुराती हुई महिला दरवाजा बंद करने को उठी तो सामने नजर गयी... गली के मुहाने पर बर्तन वाला अपना गठ्ठर खोलकर उसकी दी हुई दोनों साड़ियों में से एक साड़ी उस अर्ध विक्षिप्त महिला को तन ढँकने के लिए दे रहा था ! !!*

*हाथ में पकड़ा हुआ टब अब उसे चुभता हुआ सा महसूस हो रहा था....! बर्तन वाले के आगे अब वो खुद को हीन महसूस कर रही थी . कुछ हैसियत न होने के बावजूद बर्तन वाले ने उसे परास्त कर दिया था ! !! वह अब अच्छी तरह समझ चुकी थी कि बिना झिकझिक किये उसने मात्र दो ही साड़ियों में टब क्यों दे दिया था .*

*कुछ देने के लिए आदमी की हैसियत नहीं , दिल बड़ा होना चाहिए....!! आपके पास क्या है ? और कितना है ? यह कोई मायने नहीं रखता ! आपकी सोच व नियत सर्वोपरि होना आवश्यक है .*

*और ये वही समझता है जो इन परिस्थितियों से गुजरा हो.....! !!*🙏








*सुप्रभात*

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एक किसान था। वह एक बड़े से खेत में
खेती किया करता था। उस खेत के बीचो-बीच पत्थर
का एक हिस्सा ज़मीन से ऊपर निकला हुआ
था जिससे ठोकर खाकर वह कई बार गिर
चुका था और ना जाने कितनी ही बार उससे टकराकर
खेती के औजार भी टूट चुके थे.
रोजाना की तरह आज भी वह सुबह-सुबह खेती करने
पहुंचा पर जो सालों से होता आ रहा था एक
वही हुआ , एक बार फिर किसान का हल पत्थर से
टकराकर टूट गया।

किसान बिल्कुल क्रोधित हो उठा , और उसने मन
ही मन सोचा की आज जो भी हो जाए वह इस
चट्टान को ज़मीन से निकाल कर इस खेत के बाहर फ़ेंक
देगा।
वह तुरंत भागा और गाँव से ४-५
लोगों को बुला लाया और सभी को लेकर वह उस
पत्त्थर के पास पहुंचा ।
” मित्रों “, किसान बोला , ” ये देखो ज़मीन से
निकले चट्टान के इस हिस्से ने मेरा बहुत नुक्सान
किया है, और आज हम सभी को मिलकर इसे जड़ से
निकालना है और खेत के बाहर फ़ेंक देना है.”
और ऐसा कहते ही वह फावड़े से पत्थर के किनार वार
करने लगा, पर ये क्या ! अभी उसने एक-दो बार
ही मारा था की पूरा-का पूरा पत्थर ज़मीन से बाहर
निकल आया. साथ खड़े लोग भी अचरज में पड़ गए और
उन्ही में से एक ने हँसते हुए पूछा ,” क्यों भाई , तुम
तो कहते थे कि तुम्हारे खेत के बीच में एक
बड़ी सी चट्टान दबी हुई है , पर ये तो एक
मामूली सा पत्थर निकला ??”
किसान भी आश्चर्य में पड़ गया सालों से जिसे वह
एक भारी-भरकम चट्टान समझ रहा था दरअसल वह बस
एक छोटा सा पत्थर था !! उसे पछतावा हुआ
कि काश उसने पहले ही इसे निकालने का प्रयास
किया होता तो ना उसे इतना नुक्सान
उठाना पड़ता और ना ही दोस्तों के सामने
उसका मज़ाक बनता ।
मित्रो, इस किसान की तरह ही हम भी कई बार
ज़िन्दगी में आने वाली छोटी-छोटी बाधाओं
को बहुत बड़ा समझ लेते हैं और उनसे निपटने की बजाये
तकलीफ उठाते रहते हैं. ज़रुरत इस बात की है कि हम
बिना समय गंवाएं उन मुसीबतों से लडें , और जब हम
ऐसा करेंगे तो कुछ ही समय में चट्टान सी दिखने
वाली समस्या एक छोटे से पत्थर के समान दिखने
लगेगी जिसे हम आसानी से ठोकर मार कर आगे बढ़
सकते हैं।

कहानी आगे फॉरवर्ड करे।


🙏🏻📚📖कहानी - नालायक बेटे की📖📚🙏🏻
"बेटा , हमारा एक्सीडेंट हो गया है। मुझे ज्यादा चोट नहीं आई पर तेरी माँ की हालत गंभीर है। कछ पैसों की जरुरत है और तेरी माँ को खुन भी देना है। "बासठ साल के माधव जी ने अपने बडे बेटे से फोन पर कहा।

*"पापा, मैं बहुत व्यस्त हूँ आजकल। मेरा आना नही हो सकेगा। मुझे विदेश मे नौकरी का पैकेज मिला है तो उसी की तैयारी कर रहा हूँ।* आपका भी तो यही सपना था ना? इसलिये हाथ भी तंग चल रहा है। पैसे की व्यवस्था कर लीजिए मैं बाद मे दे दुँगा। *"उनके बडे इंजिनियर बेटे ने जबाब दिया।*

उन्होनें अपने दुसरे डाॅक्टर बेटे को फोन किया तो उसने भी आने से मना कर दिया। उसे अपनी ससुराल मे शादी मे जाना था। हाँ इतना जरुर कहा कि पैसों की चिंता मत कीजिए मै भिजवा दूँगा।

*यह अलग बात है कि उसने कभी पैसे नहीं भिजवाए। उन्होंने बहुत मायुसी से फोन रख दिया।* अब उस नालालक को फोन करके क्या फायदा। जब ये दो लायक बेटे कुछ नही कर रहे तो वो नालायक क्या कर लेगा?

उन्होंने सोचा और बोझिल कदमों से अस्पताल मे पत्नी के पास पहूँचे और कुरसी पर ढेर हो गये। पुरानी बातें याद आने लगी।

*माधव राय जी स्कुल मे शिक्षक थे। उनके तीन बेटे और एक बेटी थी। बडा इंजिनियर और मझला डाक्टर था।* दोनौ की शादी बडे घराने मे हुई थी। दोनो अपनी पत्नियों के साथ अलग अलग शहरों मे रहते थे। बेटी की शादी भी उन्होंने खुब धुमधाम से की थी।

*सबसे छोटा बेटा पढाई मे ध्यान नही लगा पाया था। ग्यारहवीं के बाद उसने पढाई छोड दी और घर मे ही रहने लगा।* कहता था मुझे नौकरी नही करनी अपने माता पिता की सेवा करनी है पर मास्टर साहब उससे बहुत नाराज रहते थे।

*उन्होंने उसका नाम नालायक रख दिया था।* दोनों बडे भाई पिता के आज्ञाकारी थे पर वह गलत बात पर उनसे भी बहस कर बैठता था। इसलिये माधव जी उसे पसंद नही करते थे।

जब माधव जी रिटायर हुए तो जमा पुँजी कुछ भी नही थी। सारी बचत दोनों बच्चों की उच्च शिक्षा और बेटी की शादी मे खर्च हो गई थी। शहर मे एक घर्, थोडी जमीन और गाँव मे थोडी सी जमीन थी। घर का खर्च उनके पेंशन से चल रहा था।

माधव जी को जब लगा कि छोटा सुधरने वाला नही तो उन्होंने बँटवारा कर दिया और उसके हिस्से की जमीन उसे देकर उसे गाँव मे ही रहने भेज दिया। हालाँकि वह जाना नही चाहता था पर पिता की जिद के आगे झुक गया और गाँव मे ही झोपडी बनाकर रहने लगा।

माधव जी सबसे अपने दोनो होनहार और लायक बेटों की बडाई किया करते। उनका सीना गर्व से चौडा हो जाता था। पर उस नालायक का नाम भी नही लेते थे।

*दो दिन पहले दोनो पति पत्नी का एक्सीडेन्ट हो गया था। वह अपनी पत्नी के साथ सरकारी अस्पताल मे भर्ती थे। डाॅक्टर ने उनकी पत्नी को आपरेशन करने को कहा था।*

"पापा, पापा!" सुन कर तंद्रा टुटी तो देखा सामने वही नालायक खड़ा था। उन्होंने गुस्से से मुँह फेर लिया। पर उसने पापा के पैर छुए और रोते हुए बोला "पापा आपने इस नालायक को क्यो नही बताया? पर मैने भी आपलोगों पर जासुस छोड रखे हैं।खबर मिलते ही भागा आया हूँ।"

पापा के विरोध के वावजुद उसने उनको एक बडे अस्पताल मे भरती कराया। माँ का आपरेशन कराया। अपना खुन दिया। दिन रात उनकी सेवा मे लगा रहता कि एक दिन वह गायब हो गया।

*वह उसके बारे मे फिर बुरा सोचने लगे थे कि तीसरे दिन वह वापस आ गया। महीने भर मे ही माँ एकदम भली चंगी हो गई। वह अस्पताल से छुट्टी लेकर उन लोगों को घर ले आया। माधव जी के पुछने पर बता दिया कि खैराती अस्पताल था पैसे नही लगे हैं।*

घर मे नौकरानी थी ही। वह उन लोगों को छोड कर वापस गाँव चला गया।

धीरे धीरे सब कुछ सामान्य हो गया। *एक दिन यूँ ही उनके मन मे आया कि उस नालायक की खबर ली जाए।* दोनों जब गाँव के खेत पर पहुँचे तो झोपडी मे ताला देख कर चौंके। *उनके खेत मे काम कर रहे आदमी से पुछा तो उसने कहा "यह खेत अब मेरे हैं।"*

"क्या? पर यह खेत तो...." उन्हे बहुत आश्चर्य हुआ। "हाँ। उसकी माँ की तबीयत बहुत खराब थी। *उसके पास पैसे नही थे तो उसने अपने सारे खेत बेच दिये।* वह रोजी रोटी की तलाश मे दुसरे शहर चला गया है। बस यह झोपडी उसके पास रह गई है। यह रही उसकी चाबी। "उस आदमी ने कहा।

वह झोपडी मे दाखिल हुये तो बरबस उस नालायक की याद आ गई। टेबुल पर पडा लिफाफा खोल कर देखा तो उसमे रखा अस्पताल का नौ लाख का बिल उनको मुँह चिढाने लगा।

उन्होंने अपनी पत्नी से कहा - *"जानकी तुम्हारा बेटा नालायक तो था ही झुठा भी है।"*

*अचानक उनकी आँखों से आँसू गिरने लगे और वह जोर से चिल्लाये -"तु कहाँ चला गया नालायक, अपने पापा को छोड कर। एक बार वापस आ जा फिर मैं तुझे कहीं नही जाने दुँगा।" उनकी पत्नी के आँसू भी वहे जा रहे थे।*

और माधव जी को इंतजार था अपने नालायक बेटे को अपने गले से लगाने का।

*सचमुच बहुत नालायक था वो।।*

शिक्षा - इस कहानी से क्या शिक्षा मिली आज शब्द नही है व्यक्त करने को ।🙏🏻
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