आना-जाना छोड़ चुके,
पर्वों से नाता तोड़ चुके ।
रखकर पत्थर अपने दिलों पर,
घर से है मुख मोड़ चुके ।।
किसका दिल करता है यारों,
घर का सुख-चैन गवाने को ।
फिर भी घर हम छोड़ आये है,
जीवन सफल बनाने को ।।
नैन में माँ के बसता सपना,
मैं अब काबिल बन जाऊँ ।
कर-कर चिन्ता बूढी़ हो गई,
कभी तो खुशियाँ दिखलाऊँ।।
बाप से मेरे चला ना जाता,
फिर भी काम को जाता है ।
मेरा खर्चा भिजवाने को ,
रोज कमाकर लाता है ।।
छत वो घर की टपक रही ,
जिसके नीचे वे सोते है ।
जब-जब बाहर हुआ मैरिट से,
मुझसे ज्यादा वे रोते है ।।
पता है तुमको, पता है रब को,
मेनहत में मेरे कोई कमी नहीं ।
वो जीवन क्या जीवन है यारों,
जिसमें किस्मत से ठनी नहीं।।
माना, चलती कठिन परीक्षा का,
मेनहत मेरा हथियार है ।
गुरुवों से लेकर दिक्षा,
अर्जुन रण को तैयार है ।।
सर्बर का मैया बाँध ना टूटे,
गला किस्मत का मैं घोटूँगा ।
चंद महीने बाकी है ।
बस ले कामयाबी लौटूँगा ।।
- सूरज कुमार 'गोगई
पर्वों से नाता तोड़ चुके ।
रखकर पत्थर अपने दिलों पर,
घर से है मुख मोड़ चुके ।।
किसका दिल करता है यारों,
घर का सुख-चैन गवाने को ।
फिर भी घर हम छोड़ आये है,
जीवन सफल बनाने को ।।
नैन में माँ के बसता सपना,
मैं अब काबिल बन जाऊँ ।
कर-कर चिन्ता बूढी़ हो गई,
कभी तो खुशियाँ दिखलाऊँ।।
बाप से मेरे चला ना जाता,
फिर भी काम को जाता है ।
मेरा खर्चा भिजवाने को ,
रोज कमाकर लाता है ।।
छत वो घर की टपक रही ,
जिसके नीचे वे सोते है ।
जब-जब बाहर हुआ मैरिट से,
मुझसे ज्यादा वे रोते है ।।
पता है तुमको, पता है रब को,
मेनहत में मेरे कोई कमी नहीं ।
वो जीवन क्या जीवन है यारों,
जिसमें किस्मत से ठनी नहीं।।
माना, चलती कठिन परीक्षा का,
मेनहत मेरा हथियार है ।
गुरुवों से लेकर दिक्षा,
अर्जुन रण को तैयार है ।।
सर्बर का मैया बाँध ना टूटे,
गला किस्मत का मैं घोटूँगा ।
चंद महीने बाकी है ।
बस ले कामयाबी लौटूँगा ।।
- सूरज कुमार 'गोगई