सनातन संचयन


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ओ३म् शांतिः शांतिः शांतिः

जब वीर जोरावर सिंह जी(९ वर्षीय) और वीर फतेह सिंह जी(५ वर्षीय ) ने वजीर खान को इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया, तब वजीर खान ने गुरु गोविंद सिंह जी के दोनों वीर पुत्रो को ज़िंदा दिवार मे चिनवाने का फतवा जारी कर दिया था और 26 दिसंबर 1705 को दोनों बालको ने धर्म के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। आज उन तेजस्वी वीरक्रांतिकारीओ के बलिदान दिवस पर हम उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते है। 🙏🙏

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ओ३म् शांतिः शांतिः शांतिः॥

अलफ़ाज़ खत्म हो जाएंगे,
गुणों की सीमा ना हो।
अलफ़ाज़ो के मोहताज नही,
गुणों के सरताज है वो ॥

- सार्थक { सनातन संचयन }
चंद पंक्तियाँ अमर हुतात्मा को समर्पित

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स्वामी दयानंद के अनन्य शिष्य, वैदिक आर्य शिक्षा पद्धति के लिये गुरुकुल कांगड़ी के संस्थापक, शुद्धि आंदोलन के जनक, युवकों के प्रेरणा स्रोत, शिक्षाविद् और प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वामी श्रद्धानंद जी के बलिदान दिवस पर शत् शत् नमन्
🙏🙏🙏🚩

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वेद विज्ञान आलोक से उद्धृत
लेखक : आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
पृष्ठ : 33
सम्पादक : यशपाल
विषय : ईश्वर तत्व की वैज्ञानिकता आधुनिक विज्ञान और भारतीय दर्शन के मर्म से॥




एकः पापानि कुरुते फलं भुंक्ते महाजनः
भोक्तारो विप्रयुच्यन्ते कर्ता दोषेण लिप्यते॥
विदुर नीति 1/43

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अश्म॑न्वती रीयते॒ सꣳर॑भध्व॒मुत्ति॑ष्ठत॒ प्र त॑रता सखायः। अत्रा॑ जही॒मोऽशि॑वा॒ येऽ अस॑ञ्छि॒वान्व॒यमुत्त॑रेमा॒भि वाजा॑न् ॥ यजुर्वेद 35/10

संक्षिप्त संदेश :- असीमानंद की प्राप्ति के लिए दुख, दुर्व्यवहार, दुर्गुणों, दुर्व्यसनों का त्याग करो॥

इस मंत्र की आचार्य ईश्वरानंद जी ने अति सुंदर और विस्तृत व्याख्या की है और मंत्रोच्चारण भी सिखाया है और दुखो से दूर होने के लिए उत्साहवर्धक बाते कही है

मंत्रोच्चारण और इस मंत्र की विस्तृत व्याख्या : https://youtu.be/iyNlzrYTIOI

ओम् सादर नमस्ते 🙏

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पुंसासमर्थानामुपद्रवायात्मनो भेवेत्काप:।
पिठरं ज्वलदतिमात्रं निजपार्श्वाव दहितिराम्।।

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ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ।।
- यजुर्वेद ४०/१

और अधिक विचारो के लिए
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तृणोल्कया ज्ञायते जातरूपं
वृत्तेन भद्रो व्यवहारेण साधुः |
शूरो भयेष्वर्थकृच्छ्रेषु धीरः
कृच्छ्रेष्वापत्सु सुहृदश्चारयश्च ||


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हुई है वही जो राम रचि राखा?
"हमारे भाग्य मे ही नही था! हमारा नसीब ही खराब है! "
आदि यह सब वाक्य मनुष्य अक्सर प्रयोग में लाता है जब वह कोई कार्य नही कर पाता अथ्वा नही करना चाहता... साक्षात यह कहना कि इस कार्य मे मेरा मन नही लग रहा अथ्वा नही लगाना चाहता , मनुष्य को यह वाक्य दोहराना सरल जान पढ़ता है जिससे कि वह अपनी हार का दोष भाग्य या ईश्वर पर डाल देता है
इसका दुष्परिणाम यह है कि व्यक्ति उस कार्य से कतराता हुआ कतराता ही रह जाता है और जीवन भर उस कार्य को कभी नही कर पाता
सफलता और असफलता मे एक ही पग का अंतर होता है... जो कार्य से कतराता है वह असफल और जो सैंकड़ों बार हारने के बाद लक्ष्य को प्राप्त करता है वह सफल ...जो असफल है वह सफल बन सकता है परंतु केवल अपनी असफलता के कारण को जानकर, उसे सुधारकर और " पुनः प्रयास करके "
यदि वह अपनी असफलता से निराश, हाथ दर हाथ बैठा रहे तो वह सफलता के निकट भी नही आ सकता
" हुई है वही जो राम रचि राखा " अर्थात ईश्वर ने जो भाग्य मे लिखा है वही होगा " क्या करे हम प्रारब्ध के मारे है " अर्थात हमारा नसीब, भाग्य अच्छा नही
इस सिद्धांत के विरुद्ध श्रीकृष्ण महाराज ने गीता में कहा है " न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः न कर्मफलसंयोगं स्वाभावस्तु प्रवर्तते "
अर्थात मनुष्य स्वतंत्र कर्ता है इसलिए शुभ और अशुभ { अच्छे और बुरे } कर्म वह अपनी इच्छा से करता है ईश्वर का जिसमे कोई हाथ नही और उन्ही कर्मो के अनुसार उसे फल मिलेगा यही कर्म फल सिद्धांत है...
जैसे बिना चोरी के FIR नही हो सकती उसी प्रकार बिना कर्म किए ही भाग्य और प्रारब्ध मिथ्या है
मनुष्य के निरंतर कर्म करने की अवस्था को " क्रियमाण " कहते है और जब कर्म पूरा होकर फल देने योग्य होकर जमा हो, उसे संचित कर्म कहते हैं
संचित की जिस अवस्था में फल मिलना प्रारंभ होता है उसे प्रारब्ध कहते है
अतः स्पष्ट हो गया कि मनुष्य अपना भाग्य स्वयं रचता है जैसा वह कर्म करता है, उसके अनुरूप ही उसे फल मिलता है... भाग्य ईश्वर द्वारा थोपा नही जाता
" हुई है वही जो राम रचि राखा " आलसी और प्रमादियो की उपज है
सदैव याद रखो " सोम आह तवाहमस्मि सख्ये न्योकाः " अर्थात ईश्वर केवल उसी का सहायक बनता है जो पुरुषार्थ करता है !! "
चरैवेति चरैवेति !

- सार्थक विद्यार्थी


सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी लक्ष्मी बाई जी की जयंती पर उनको शत शत नमन🙏🙏🚩🚩


( सनातन संचयन)


मूर्खस्तु परिहर्तव्यः प्रत्यक्षो द्विपदः पशुः
भिनत्ति वाक्शल्येन अदृष्टः कण्टको यथा॥

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