१. ईश्वर एक है, अनेक नहीं
ईश्वर एक है, अनेक नहीं-वेद और वेदानुकूल सभी ग्रंथों में ऐसा ही लिखा है। एक ईश्वर ही अनेक नामों से पुकारा गया है। प्रत्येक नाम उसके किसी न किसी गुण को प्रकट करता है। जैसे -
ब्रह्म - सबसे बड़ा।
ब्रह्मा - सब जगत् को बनाने वाला।
शिव - कल्याण स्वरूप और कल्याण करने वाला।
विष्णु - चर और अचर सब जगत् में व्यापक।
रुद्र - दुष्ट कर्म करने वालों को दण्ड देकर रुलाने वाला।
गणेश - सब का स्वामी और पालन करने वाला।
पिता - सब की पालना और रक्षा करने वाला।
देव - विद्वान् और विद्या आदि देने वाला।
यम - सब प्राणियों को न्यायपूर्वक यथायोग्य कर्मफल देने वाला।
भगवान - ऐश्वर्यवान ।
चन्द्र - आनन्द स्वरूप और सबको आनन्द देने वाला।
ओ३म्-यह शब्द तीन अक्षरों अ, उ, म् से बना है। अ+उ = ओ। ओ और म् के बीच में लिखा '३' ओम् के उच्चारण को लम्बा करने का (प्लुत का) निर्देश देता है।
अ - विराट्, अग्नि, विश्व आदि।
उ - हिरण्यगर्भ, वायु, तैजस आदि।
म् - ईश्वर, आदित्य, प्राज्ञ आदि।
विराट् - जो बहुत प्रकार के जगत् को प्रकाशित करे।
अग्नि - ज्ञान स्वरूप सर्वज्ञ।
विश्व - जो आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु में प्रविष्ट हुआ है।
हिरण्यगर्भ - जो सूर्य आदि तेज वाले पदार्थों का उत्पत्ति तथा निवास स्थान है।
वायु - जो सब चराचर जगत् का धारण, जीवन और प्रलय करता है।
तैजस - जो स्वयं प्रकाशस्वरूप तथा सूर्य आदि तेजस्वी लोकों का प्रकाश करने वाला है।
ईश्वर - सामर्थ्यवान् सभी ऐश्वर्य सम्पन्न ।
आदित्य - जिसका विनाश कभी न हो।
प्राज्ञ - जो सब चराचर जगत् के व्यवहार को यथावत् जानता है।
ईश्वर के सब नामों में 'ओम्' सर्वोत्तम नाम है क्योंकि इससे उसके सबसे अधिक गुण प्रकट होते हैं। यही ईश्वर का प्रधान और निज नाम है। अन्य सभी नाम गौण हैं।
ओ३म् खं ब्रह्म। (यजुर्वेद ४०, १७)
अर्थ - आकाश के समान व्यापक, सबसे बड़ा, सब जगत का रक्षक ओ३म् है।
ओ३म् क्रतोस्मर। (यजुर्वेद)
अर्थ - ऐ कर्मशील मनुष्य ! ओ३म् को याद रख।
ओम् इति एतद् अक्षरम् उद्गीथम् उपासीत। (छान्दोग्योपनिषद्)
अर्थ - ओम् जिसका नाम है और जो कभी नष्ट नहीं होता उसी की उपासना करनी योग्य है, और किसी की नहीं।
ओम् इति एतद् अक्षरम् इदम् सर्वं तस्य उपव्याख्यानम्। (माण्डूक्योपनिषद)
अर्थ - वेदादि सब शास्त्रों में परमेश्वर का प्रधान और निज नाम 'ओम्' को कहा गया है।
सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति तपांसि सर्वाणि च यद् वदन्ति। यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण ब्रवीमि ओम् इति एतत्॥ (कठोपनिषद)
अर्थ - सारे वेद जिस पद का वर्णन करते हैं, जिसे जानने के लिए सब तप किए जाते हैं, जिसकी चाहना में यति लोग ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, वह पद संक्षेप में तुझे बताता हूँ, वह पद ओम् है।
ईश्वर एक है, अनेक नहीं-वेद और वेदानुकूल सभी ग्रंथों में ऐसा ही लिखा है। एक ईश्वर ही अनेक नामों से पुकारा गया है। प्रत्येक नाम उसके किसी न किसी गुण को प्रकट करता है। जैसे -
ब्रह्म - सबसे बड़ा।
ब्रह्मा - सब जगत् को बनाने वाला।
शिव - कल्याण स्वरूप और कल्याण करने वाला।
विष्णु - चर और अचर सब जगत् में व्यापक।
रुद्र - दुष्ट कर्म करने वालों को दण्ड देकर रुलाने वाला।
गणेश - सब का स्वामी और पालन करने वाला।
पिता - सब की पालना और रक्षा करने वाला।
देव - विद्वान् और विद्या आदि देने वाला।
यम - सब प्राणियों को न्यायपूर्वक यथायोग्य कर्मफल देने वाला।
भगवान - ऐश्वर्यवान ।
चन्द्र - आनन्द स्वरूप और सबको आनन्द देने वाला।
ओ३म्-यह शब्द तीन अक्षरों अ, उ, म् से बना है। अ+उ = ओ। ओ और म् के बीच में लिखा '३' ओम् के उच्चारण को लम्बा करने का (प्लुत का) निर्देश देता है।
अ - विराट्, अग्नि, विश्व आदि।
उ - हिरण्यगर्भ, वायु, तैजस आदि।
म् - ईश्वर, आदित्य, प्राज्ञ आदि।
विराट् - जो बहुत प्रकार के जगत् को प्रकाशित करे।
अग्नि - ज्ञान स्वरूप सर्वज्ञ।
विश्व - जो आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु में प्रविष्ट हुआ है।
हिरण्यगर्भ - जो सूर्य आदि तेज वाले पदार्थों का उत्पत्ति तथा निवास स्थान है।
वायु - जो सब चराचर जगत् का धारण, जीवन और प्रलय करता है।
तैजस - जो स्वयं प्रकाशस्वरूप तथा सूर्य आदि तेजस्वी लोकों का प्रकाश करने वाला है।
ईश्वर - सामर्थ्यवान् सभी ऐश्वर्य सम्पन्न ।
आदित्य - जिसका विनाश कभी न हो।
प्राज्ञ - जो सब चराचर जगत् के व्यवहार को यथावत् जानता है।
ईश्वर के सब नामों में 'ओम्' सर्वोत्तम नाम है क्योंकि इससे उसके सबसे अधिक गुण प्रकट होते हैं। यही ईश्वर का प्रधान और निज नाम है। अन्य सभी नाम गौण हैं।
ओ३म् खं ब्रह्म। (यजुर्वेद ४०, १७)
अर्थ - आकाश के समान व्यापक, सबसे बड़ा, सब जगत का रक्षक ओ३म् है।
ओ३म् क्रतोस्मर। (यजुर्वेद)
अर्थ - ऐ कर्मशील मनुष्य ! ओ३म् को याद रख।
ओम् इति एतद् अक्षरम् उद्गीथम् उपासीत। (छान्दोग्योपनिषद्)
अर्थ - ओम् जिसका नाम है और जो कभी नष्ट नहीं होता उसी की उपासना करनी योग्य है, और किसी की नहीं।
ओम् इति एतद् अक्षरम् इदम् सर्वं तस्य उपव्याख्यानम्। (माण्डूक्योपनिषद)
अर्थ - वेदादि सब शास्त्रों में परमेश्वर का प्रधान और निज नाम 'ओम्' को कहा गया है।
सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति तपांसि सर्वाणि च यद् वदन्ति। यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण ब्रवीमि ओम् इति एतत्॥ (कठोपनिषद)
अर्थ - सारे वेद जिस पद का वर्णन करते हैं, जिसे जानने के लिए सब तप किए जाते हैं, जिसकी चाहना में यति लोग ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, वह पद संक्षेप में तुझे बताता हूँ, वह पद ओम् है।