मैक्समूलर और ऋषि दयानन्द।प्रस्तुति - आशीष विद्यार्थी
फ्रेंडिच मैक्स मूलर एक जर्मन निवासी जो ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कर्मचारी थे । भारतीय विचारधारा को इसाईयत में परिवर्तन करने के लिए इनका एक अहम योगदान था। अपने इस कार्य को अंजाम देने के लिए एक सबसे प्रचलित नीति का सहारा लिया, किसी भी संस्कृति को बर्बाद करना हो तो उसके मूल उसके इतिहास को बदला जाए उसके धार्मिक सांस्कृितिक मूल्यों को नष्ट किया जाए।इसी प्रयास में मैक्समास्तर ने वेदो को अपने
षड़यंत्र का आधार बनाया क्योंकि वेदो के अनर्थकारी भाष्य (सायन महिधर आदि प्रचलित थे जो किसी भी विधर्मी के लिए सनातन संस्कृति पर प्रहार करने के लिए पर्याप्त हैं) सायन महिधरआदि की शैली में मैक्सम्बलर ने वेदों का अनर्थकारी भाष्य किया वह अपनी पत्नी को इस विषय में लिखता हैं-
"This edition of mine and the translation of the Veda will, hereafter, tell to a great extent on the fate of India. It is the root of their religion and to show them what the root is, I feel sure, is the only way of uprooting all that has sprung from it during the last three thousand years." (Life and Letters of Frederick Maxmuller, Vol. I, Chap. XV, p. 34 )अर्थात् 'मेरा यह संस्करण और वेद का अनुवाद भारत के भाग्य को दूर तक प्रभावित करेगा। यह उनके धर्म का मूल है और उन्हें यह दिखा देना कि वह मूल कैसा है, गत तीन हजार वर्षों में इससे उत्पन्न होनेवाली सब बातों को समूल उखाड़ने का एकमात्र उपाय है।'
इस पत्र से स्पष्ट हैं की मैक्समूलर की क्या मनोदशा रही होगी ।इसके साथ हमे यह भी जानने की आवश्यकता है की उसकी वेदों के प्रति क्या विचारधारा थी सायन के भाष्य और ऋषि दयानन्द के भाष्य के बाद।
अपनि पुस्तक "India What can it teach us" के पृष्ठ 57 पर लिखता है -
"That the veda is Full of childish, silly and Monstrous Conceptions, Who would deny? अर्थात वेद बचकाना, मूर्खतापूर्ण और राक्षस्वत,विकराल, नितान्त असंगत बातों का भरपूर है इससे कोन इनकार कर सकता है ?
इसी प्रकार मद्रास क्रिश्चियन सोसायटी की ओर से प्रकाशित "Vedic Hinduism" में मैक्स मूलर ने लिखा
"I remind you again that the Vedas contain a great deal of what is childish and foolish" अर्थात मैं एक बार फिर याद दिलाता हूं कि वेदों में बहुत सी बचकाना और मूर्खतापूर्ण बातें भरी पड़ी है। एक और स्थान पर-"a large number of vedic hymns are childish in the extreme, tedious,low and common place." अर्थात वैदिक सुक्तो की एक बड़ी संख्या बिल्कुल बचकानी, जटिल, निकृष्ट और अत्यंत साधारण है"(chips from a German workshop (Ed.1866,p.27)
आपने उपर्युक्त उद्धरण में देखा कैसे मैक्स मूलर वेदों की निंदा कर रहा है। यह सब का मूल मध्यकालीन आचार्यों का वेद भाष्य और उनकी पूरी प्रक्रिया है यदि पाश्चात्य विद्वानों के समक्ष शायद वह महीधर आदि के भाष्य ना होते तो यह वेदों के विषय में यह अनर्थ न कर पाते न साहस कर पाते ना अपने षड्यंत्र को अंजाम दे पाते।शुद्ध यथार्थ भाष्य यदि मैक्स मूलर के समक्ष होते तो उसकी वेदों के प्रति कुछ और ही धारणा होती। इसकी तुष्टिकरण के लिए मैक्स मूलर के निम्न वाक्य ऋषि दयानंद के भाषा के ऊपर प्रस्तुत है- "to Swami Dayanand everything contained in the Vedas was not only perfect truth, but he went up one step further and by their interpretation succeeded in pursuing others that everything worth knowing-even the most recent inventions of modern science where alluded to in the Vedas. Steam engines, electricity, telegrafi and wireless microgram where shown to have been known at least in the germs to the poets of the Vedas." अर्थात"स्वामी दयानंद की दृष्टि में वेदों में पूर्ण सत्य का ही प्रतिपादन किया गया है। इतना ही नहीं, वह एक कदम और आगे बढ़े और उनकी व्याख्या द्वारा उन्होंने औरों को भी यह विश्वास दिलाने में सफलता प्राप्त की कि जो कुछ भी ज्ञातव्य है, जिसमें भाप का इंजन, बिजली, तार, बेतार आदि भी सम्मिलित है, वर्तमान विज्ञान के इन सब नवीनतम आविष्कारों का भी वैदिक ऋषि यों को ज्ञान था।
इस लेख से आपको स्पष्ट हो गया होगा कि ऋषि दयानंद सरस्वती जी के वेद भाष्य ने एक ऐसे पुरवाग्राही जो कभी वेदों की निंदा ना करते थकता था को भी वेदों में सब सत्य विद्याओं को मानने पर विवश कर दिया।
~ आशीष विद्यार्थी
( सनातन संचयन )
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