🎯GYAAN BHANDAAR🎯


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"Life में कुछ ऐसा कर जाओ की लोग आपके struggle पर किताब लिखने को मजबूर हो जाएं।"
"""प्रीत न करिये पंछी जैसी,
जल सूखे उड़ि जात,
प्रीत करिये मछली जैसी,
जल सूखे मरि जात।"""
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भारतीय शिल्पकारों की कारीगरी का कोई जवाब नहीं😍

*नाकोड़ा जैन मंदिर, बाड़मेर, राजस्थान* 💓😍💘


गमाकरपाताहाकंकेनावनतोहिसः ।
न समानर्दमारामालंकाराजस्वसा रतम् ॥ १७ विलोमम्:
तं रसास्वजराकालंमारामार्दनमासन ।
सहितोनवनाकेकं हातापारकमागसा ॥ १७॥

तां स गोरमदोश्रीदो विग्रामसदरोतत ।
वैरमासपलाहारा विनासा रविवंशके ॥ १८॥

विलोमम्:
केशवं विरसानाविराहालापसमारवैः ।
ततरोदसमग्राविदोश्रीदोमरगोसताम् ॥ १८॥

गोद्युगोमस्वमायोभूदश्रीगखरसेनया ।
सहसाहवधारोविकलोराजदरातिहा ॥ १९॥

विलोमम्:
हातिरादजरालोकविरोधावहसाहस ।
यानसेरखगश्रीद भूयोमास्वमगोद्युगः ॥ १९॥

हतपापचयेहेयो लंकेशोयमसारधीः ।
राजिराविरतेरापोहाहाहंग्रहमारघः ॥ २०॥

विलोमम्:
घोरमाहग्रहंहाहापोरातेरविराजिराः ।
धीरसामयशोकेलं यो हेये च पपात ह ॥ २०॥

ताटकेयलवादेनोहारीहारिगिरासमः ।

हासहायजनासीतानाप्तेनादमनाभुवि ॥ २१॥

विलोमम्:
विभुनामदनाप्तेनातासीनाजयहासहा ।
ससरागिरिहारीहानोदेवालयकेटता ॥ २१॥

भारमाकुदशाकेनाशराधीकुहकेनहा ।
चारुधीवनपालोक्या वैदेहीमहिताहृता ॥ २२॥

विलोमम्:
ताहृताहिमहीदेव्यैक्यालोपानवधीरुचा ।
हानकेहकुधीराशानाकेशादकुमारभाः ॥ २२॥

हारितोयदभोरामावियोगेनघवायुजः ।
तंरुमामहितोपेतामोदोसारज्ञरामयः ॥ २३॥

विलोमम्:
योमराज्ञरसादोमोतापेतोहिममारुतम् ।
जोयुवाघनगेयोविमाराभोदयतोरिहा ॥ २३॥

भानुभानुतभावामासदामोदपरोहतं ।
तंहतामरसाभक्षोतिराताकृतवासविम् ॥ २४॥

विलोमम्:
विंसवातकृतारातिक्षोभासारमताहतं ।
तं हरोपदमोदासमावाभातनुभानुभाः ॥ २४॥

हंसजारुद्धबलजापरोदारसुभाजिनि ।
राजिरावणरक्षोरविघातायरमारयम् ॥ २५॥

विलोमम्:
यं रमारयताघाविरक्षोरणवराजिरा ।
निजभासुरदारोपजालबद्धरुजासहम् ॥ २५॥

सागरातिगमाभातिनाकेशोसुरमासहः ।
तंसमारुतजंगोप्ताभादासाद्यगतोगजम् ॥ २६॥

विलोमम्:
जंगतोगद्यसादाभाप्तागोजंतरुमासतं ।
हस्समारसुशोकेनातिभामागतिरागसा ॥ २६॥

वीरवानरसेनस्य त्राताभादवता हि सः ।
तोयधावरिगोयादस्ययतोनवसेतुना ॥ २७॥

विलोमम्
नातुसेवनतोयस्यदयागोरिवधायतः ।
सहितावदभातात्रास्यनसेरनवारवी ॥ २७॥

हारिसाहसलंकेनासुभेदीमहितोहिसः ।
चारुभूतनुजोरामोरमाराधयदार्तिहा ॥ २८॥

विलोमम्
हार्तिदायधरामारमोराजोनुतभूरुचा ।
सहितोहिमदीभेसुनाकेलंसहसारिहा ॥ २८॥

नालिकेरसुभाकारागारासौसुरसापिका ।
रावणारिक्षमेरापूराभेजे हि ननामुना ॥ २९॥

विलोमम्:
नामुनानहिजेभेरापूरामेक्षरिणावरा ।
कापिसारसुसौरागाराकाभासुरकेलिना ॥ २९॥

साग्र्यतामरसागारामक्षामाघनभारगौः ॥
निजदेपरजित्यास श्रीरामे सुगराजभा ॥ ३०॥

विलोमम्:
भाजरागसुमेराश्रीसत्याजिरपदेजनि ।स
गौरभानघमाक्षामरागासारमताग्र्यसा ॥ ३०॥

॥ इति श्रीवेङ्कटाध्वरि कृतं श्री ।।


दक्षिण भारत का एक ग्रंथ ऐसा भी है हमारे सनातन धर्म में।

कि जब आप किताब को सीधा पढ़े तो राम कथा के रूप में पढ़ी जाती है और जब उसी किताब में लिखे शब्दों को उल्टा करके पढ़ें
तो कृष्ण कथा के रूप में होती है ।

कांचीपुरम के 17वीं शदी के कवि *वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ "राघवयादवीयम्"* ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है।

इस ग्रन्थ को
*'अनुलोम-विलोम काव्य’* भी कहा जाता है। पूरे ग्रन्थ में केवल 30 श्लोक हैं। इन श्लोकों को सीधे-सीधे
पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है और
विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा। इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा (उल्टे यानी विलोम)के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक।

पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है ~ "राघवयादवीयम।"

पुस्तक का पहला श्लोक हैः

वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥

अर्थातः
मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो
जिनके ह्रदय में सीताजी रहती है तथा जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापिस लौटे।

अब इस श्लोक का विलोमम्: इस प्रकार है

सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥

अर्थातः
मैं रूक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के
चरणों में प्रणाम करता हूं, जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ
विराजमान है तथा जिनकी शोभा समस्त जवाहरातों की शोभा हर लेती है।

" राघवयादवीयम" के ये 60 संस्कृत श्लोक इस प्रकार हैं:-

राघवयादवीयम् रामस्तोत्राणि
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥

विलोमम्:
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥

साकेताख्या ज्यायामासीद्याविप्रादीप्तार्याधारा ।
पूराजीतादेवाद्याविश्वासाग्र्यासावाशारावा ॥ २॥

विलोमम्:
वाराशावासाग्र्या साश्वाविद्यावादेताजीरापूः ।
राधार्यप्ता दीप्राविद्यासीमायाज्याख्याताकेसा ॥ २॥

कामभारस्स्थलसारश्रीसौधासौघनवापिका ।
सारसारवपीनासरागाकारसुभूरुभूः ॥ ३॥

विलोमम्:
भूरिभूसुरकागारासनापीवरसारसा ।
कापिवानघसौधासौ श्रीरसालस्थभामका ॥ ३॥

रामधामसमानेनमागोरोधनमासताम् ।
नामहामक्षररसं ताराभास्तु न वेद या ॥ ४॥

विलोमम्:
यादवेनस्तुभारातासंररक्षमहामनाः ।
तां समानधरोगोमाननेमासमधामराः ॥ ४॥

यन् गाधेयो योगी रागी वैताने सौम्ये सौख्येसौ ।
तं ख्यातं शीतं स्फीतं भीमानामाश्रीहाता त्रातम् ॥ ५॥

विलोमम्:
तं त्राताहाश्रीमानामाभीतं स्फीत्तं शीतं ख्यातं ।
सौख्ये सौम्येसौ नेता वै गीरागीयो योधेगायन् ॥ ५॥

मारमं सुकुमाराभं रसाजापनृताश्रितं ।
काविरामदलापागोसमावामतरानते ॥ ६॥

विलोमम्:
तेन रातमवामास गोपालादमराविका ।
तं श्रितानृपजासारंभ रामाकुसुमं रमा ॥ ६॥

रामनामा सदा खेदभावे दया-वानतापीनतेजारिपावनते ।
कादिमोदासहातास्वभासारसा-मेसुगोरेणुकागात्रजे भूरुमे ॥ ७॥

विलोमम्:
मेरुभूजेत्रगाकाणुरेगोसुमे-सारसा भास्वताहासदामोदिका ।
तेन वा पारिजातेन पीता नवायादवे भादखेदासमानामरा ॥ ७॥

सारसासमधाताक्षिभूम्नाधामसु सीतया ।
साध्वसाविहरेमेक्षेम्यरमासुरसारहा ॥ ८॥

विलोमम्:
हारसारसुमारम्यक्षेमेरेहविसाध्वसा ।
यातसीसुमधाम्नाभूक्षिताधामससारसा ॥ ८॥

सागसाभरतायेभमाभातामन्युमत्तया ।
सात्रमध्यमयातापेपोतायाधिगतारसा ॥ ९॥

विलोमम्:
सारतागधियातापोपेतायामध्यमत्रसा ।
यात्तमन्युमताभामा भयेतारभसागसा ॥ ९॥

तानवादपकोमाभारामेकाननदाससा ।
यालतावृद्धसेवाकाकैकेयीमहदाहह ॥ १०॥

विलोमम्:
हहदाहमयीकेकैकावासेद्ध्वृतालया ।
सासदाननकामेराभामाकोपदवानता ॥ १०॥

वरमानदसत्यासह्रीतपित्रादरादहो ।
भास्वरस्थिरधीरोपहारोरावनगाम्यसौ ॥ ११॥

विलोमम्:
सौम्यगानवरारोहापरोधीरस्स्थिरस्वभाः ।
होदरादत्रापितह्रीसत्यासदनमारवा ॥ ११॥

यानयानघधीतादा रसायास्तनयादवे ।
सागताहिवियाताह्रीसतापानकिलोनभा ॥ १२॥

विलोमम्:
भानलोकिनपातासह्रीतायाविहितागसा ।
वेदयानस्तयासारदाताधीघनयानया ॥ १२॥

रागिराधुतिगर्वादारदाहोमहसाहह ।
यानगातभरद्वाजमायासीदमगाहिनः ॥ १३॥

विलोमम्:
नोहिगामदसीयामाजद्वारभतगानया ।
हह साहमहोदारदार्वागतिधुरागिरा ॥ १३॥

यातुराजिदभाभारं द्यां वमारुतगन्धगम् ।
सोगमारपदं यक्षतुंगाभोनघयात्रया ॥ १४॥

विलोमम्:
यात्रयाघनभोगातुं क्षयदं परमागसः ।
गन्धगंतरुमावद्यं रंभाभादजिरा तु या ॥ १४॥

दण्डकां प्रदमोराजाल्याहतामयकारिहा ।
ससमानवतानेनोभोग्याभोनतदासन ॥ १५॥

विलोमम्:
नसदातनभोग्याभो नोनेतावनमास सः ।
हारिकायमताहल्याजारामोदप्रकाण्डदम् ॥ १५॥

सोरमारदनज्ञानोवेदेराकण्ठकुंभजम् ।
तं द्रुसारपटोनागानानादोषविराधहा ॥ १६॥

विलोमम्:
हाधराविषदोनानागानाटोपरसाद्रुतम् ।
जम्भकुण्ठकरादेवेनोज्ञानदरमारसः ॥ १६॥

सा


इस बात में तो कोई शक नहीं है कि भारत में बड़े-बड़े विद्वानों ने जन्म लिया है. भारत में रचित हज़ारों साल पुराने ग्रंथों में कई ऐसी बातें लिखी हैं, जिन्हें जानने में बाकी दुनिया को कई साल लग गए. जिन्हें दुनिया आज अपना कह रही है, दरअसल हजारों साल पहले उन तथ्यों को भारत के विद्वानों द्वारा खोज लिया गया था. इन तथ्यों से पता चलता है कि भारत वैज्ञानिक उन्नति में हमेशा से बाकी देशों से आगे रहा है. परन्तु आज इन वैज्ञानिक खोज में भारत कहीं न कहीं पीछे चला गया है. इसके पीछे और कोई नहीं बल्कि हम भारतीय ही जिम्मेदार हैं. हमने अपने इस स्वर्णिम इतिहास को भूला दिया है, जिसे अब वापस जानने का वक्त आ गया है. जानें भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किये गए खोज की कहानी-

1. सौर-मंडल का अस्तित्व -

सौर-मंडल के अस्तित्व के बारे में ऋग्वेद में साफ़-साफ़ लिखा है, ऋग्वेद के मुताबिक, सूर्य के आस पास खगोलीय पिंड चक्कर लगाते हैं और आकर्षण के बल के कारण ये आपस में टकराते नहीं हैं.

ऋग्वेद का ये ज्ञान साफ़ करता है कि अंतरिक्ष के बारे में हमारे ज्ञान सबसे पुराना है.



2. गुरुत्वाकर्षण बल (Gravity) -

गुरुत्वाकर्षण बल के बारे में ऋग्वेद में साफ़-साफ़ विवरण किया गया है. ऋग्वेद के मुताबिक, पृथ्वी के हाथ-पैर नहीं हैं, पर ये चलती है. इसके साथ सब कुछ घूम रहा है. ये सूर्य का चक्कर लगाती है.



3. प्रकाश की गति -

प्रकाश की गति के बारे में सयाना नाम के एक प्रसिद्ध भारतीय वैदिक विद्वान ने 14वीं शताब्दी में पता लगा लिया था. उन्होंने अपने कई लेखों में इसके बारे में जानकारी दी है.



4. ग्रहण के पीछे का कारण -

भारतीय विद्वानों को पहले ही ग्रहण के (सूर्य या चन्द्र ग्रहण) पीछे के विज्ञान के बारे में पता था. बाकी दुनिया तब ग्रहण का कारण काले जादू को मानती थी. वहीं ऋग्वेद में सूर्य ग्रहण का वर्णन लिखा हुआ था. ऋग्वेद में साफ-साफ़ लिखा है- ऐ सूर्य! जब वो ही तुम्हारी रोशनी को रोकने लगता है, जिसे तुमने ही रोशन किया है, तो पृथ्वी पर अंधेरा छा जाता है.



5. पृथ्वी गोल है -

कई प्राचीन लेखों और ग्रंथों में भारतीय खगोलविदों ने पहले ही बता दिया था कि सूर्य एक विशाल तारा है और पृथ्वी का आकार गोल है. इन ग्रंथों से साफ़ अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारतीय ज्ञान कितना विशाल है.



6. पृथ्वी का आकार और परिधि -

ब्रह्मगुप्त ने 7वीं शताब्दी में पृथ्वी की परिधि (Circumference) 36,000 km बताई थी. असल में पृथ्वी की परिधि 40,075 km है. यानी इसमें केवल 1% Error Margin था.



7. साल के दिन -

भारतीय ज्ञान सूर्य सिद्धांत में एक साल का समय नापने के 4 तरीके बताये गए हैं- 'Nakshatra', 'Savana', 'Lunar' और 'Saura'. Saura विधि से एक होते हैं.



8. Pi का मूल्य -

आर्यभट्ट ने Pi (π) की Value 3.1416 बताई थी. उस वक्त उनकी उम्र मात्र 23 वर्ष थी. आर्यभट्ट का नाम दुनिया के सबसे बड़े विद्वानों में गिना जाता है. Trigonometry भी उन्हीं की देन है.



9. शल्य चिकित्सा -

Surgical Procedures के बारे में जब दुनिया कुछ नहीं जानती थी, तब भी भारत में सुश्रुत शल्य चिकित्सा किया करते थे. 1200BC में ही भारतीय विद्वानों ने 184 अध्यायों का Medical Encyclopedia लिख दिया था. आयुर्वेद में जड़ी-बूटियों से Anesthesia भी बनाया जाता था.


ाकाई भी यही काम करता है

💜मुंह साफ करने के लिए( फेस वॉश):-
2 चमच्च एलोवेरा में 1/4 चमच्च हलदी मिळाये, 5 मिनट चेहरे पर लगाये फिर पानी से धो ले

इलाज से बेहतर बचाव है
स्वदेशी बने प्रकृति से जुड़े
धन्यवाद
🙏
आप की सेवा मे सभी फोन चालू है🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻


❤❤❤घरेलू उपचार एवं ज्ञान:- हमारे सदस्यों का पूरे विश्व से फोन आ रहे है... इससे जो डॉकटर की डायरी मे जो कॉमन सवालो का जवाब अक्सर होता है... 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

💚आजकल हर किसी को कभी सिर दर्द, कभी उल्टी ,कभी जुखाम, कभी कफ, कभी खाँसी सुन रहा है, आज उसी विषय पर कैसे घर के सामान का प्रयोग करे शिखते है

💚कभी अचानक समस्या आने पर समझ नही आता क्या किया जाए, तो इसे सब नॉट करके रखे

💜हर घर मे ये 26 वस्तु होगी ही 48 नही तो!

1 आवला
2 हरड़
3 बहेडा
4 वंशलोचन
5 सोंठ
6 गिलोय
7 छोटी पीपर
8 मेथी दाना
9 अजवाइन
10 मुलेठी
11 काली मिर्च
12 दालचीनी
13 लोंग
14 जीरा
15 तुलसी
16 अर्जुन की छाल का पाउडर
17 लहसुन
18 पुदीना
19 नीम्बू
20 शतावरी
21 धनिया
22 इलाइची
23 गुड़हल पाउडर
24 हल्दी-
25 एलोवेरा
26 सरसो का तेल

💛सर्दी जुखाम:-
100 ग्राम पानी ले,इसमे 1 चमच्च तुलसी के पत्ते, आधा चमच्च सोंठ, आधा चमच्च काली मिर्च पाउडर, आधा चमच्च दालचिनी पाउडर, डालकर 5 मिनट गर्म करें दिन में 4 बार बनाकर गर्म गर्म पिए

💛कफ :-
100 ग्राम पानी ले,इसमे 2 चमच्च मुलेठी पाउडर डालें 5 मिनट गर्म करें, दिन में 3 बार बनाकर गर्म गर्म पिये

💛खून पतला करना:-
100 ग्राम पानी ले,इसमे एक चमच्च सोंठ, आधा चमच्च लहसुन, आधा चमच्च गुड़हल पाउडर डाल कर 5 मिनट गर्म करें
रात को खाने के बाद एक बार पिये

नॉट- अदरक लहसुन हल्दी या अदरक कालीमिर्च हल्दी का एक चम्मच पेस्ट भी यही काम करता है सुबह खाली पेट लें।

💛सांस फूलना, अस्थमा, कोई वायरल बीमारी:-
2 चमच्च वंशलोचन, 1 चमच्च छोटी पीपर, आधा चम्मच दालचीनी, आधा चम्मच इलाइची 4 चमच्च शहद में मिलाये दिन में 3 बार सेवन करे

💛कब्ज:-
50 ml गुनगुना पानी ले, इंसमे एक चमच्च त्रिफला मिलाये त्रिफला समान अनुपात का हो, दिन में 3 बार सेवन करे

💛बुखार:-
100 ग्राम पानी ले, इंसमे 3 चमच्च गिलोय ले, एक चम्मच तुलसी ले, 5 मिनट गर्म करें, दिन में 3 बार ताज़ा बनाकर पिये

💛सिर दर्द :-
100 ग्राम पानी ले, आधा चमच्च सोंठ, आधा चम्मच काली मिर्च, आधा चमच दालचीनी ,आधा चम्मच लोंग मिलाकर 5 मिनट गर्म करें, और पिये

💛अपच(इनडाइजेशन):-
100ml पानी ले,एक चँम्मच अजवाइन, आधा चमच्च मेथी,आधा चमच्च कालीमिर्च, आधा चम्मच दालचीनी, आधा चम्मच काला नमक डालें, 5 मिनट गर्म करें, दिन में 3-4 बार पिये

💛जी खराब होना ,उल्टी:-
50ml पानी ले, एक चम्मच सोंठ, एक चम्मच पुदीना, आधा निम्बू का रस, एक चम्मच शहद (या गुड) को पानी में मिलाएं,और पिए, गर्म नही करना है दिन में 3 बार

💛हड्डियों ,जोड़ो में दर्द(जॉइंट पेन):-
50 ml पानी ले, इसमे आधा चम्मच सोंठ आधा चम्मच काली मिर्च, आधा चम्मच हल्दी, चुटकी भर काला नमक मिलाइए औऱ पिये गर्म नहीं करना और सरसों के शुद्ध तेल को गर्म करके मालिश करे, दोनो काम दिन में 2 बार !

💛डायरिया:-
एक चम्मच सोंठ, एक चम्मच दालचीनी, एक चम्मच जीरा,एक चमच्च शहद में मिलाये दिन में 3-4 बार खायेँ, पानी पीते रहे

💛त्वचा पर लाल चककत्ते (स्किन रैशेस):-
5 चम्मच एलोवेरा का रस ले शुद्ध, इंसमे 10 बूँद पानी डालें दिन में 4-5 बार चक्कतो पर लगाये।

💛पेट दर्द:-
50ml पानी लें, एक चम्मच सोंठ ले, एक चम्मच पुदीना का रस मिलाये चुटकी भर नमक डालें दिन में 3 बार पिये, पानी गर्म नही करना

💛दाँत दर्द:-
एक चम्मच लवंग का पाउडर लें, 2-4 बूंदे पानी की डाले दांत दर्द वाले हिस्से पर लगाये

💛कट जाना या घाव होना:-
5 चम्मच हल्दी, 5 चम्मच एलोबेरा ले, पेस्ट बनाएं, और घाव पर लगाये दिन में 3 बार, डेटोल न लगाएं

💛जल जाना:-
एलोवेरा को दिन में 4-5 बार लगाए

💛कान का दर्द:-
2 चमच लहसुन पीसकर, 20ml सरसो के तेल में गर्म करें, ठंडा होने पर कान में डाले दिन में 2 बार करें

💛उच्च रक्तचाप:-
100 ग्राम पानी ले, 2 चम्मच अर्जुन की छाल, 2 चमच्च गुड़हल का पाउडर, डालकर गरम करे दिन में 2 बार काढा बनाकर पिये

💛शुगर:-
100ml पानी ले, एक चम्मच मेथी, एक चम्मच जीरा, एक चम्मच धनिया, एक चमच्च हल्दी, डालकर 5 मिनट गर्म करें, दिन में 3 बार पिये

💛नपुंसकता, स्पर्म काउंट में कमी:-
100 ml गर्म पानी मे एक चम्मच वंशलोचन, एक चम्मच शतावरी, एक चम्मच गिलोय, डालकर दिन में 2 बार पिये

नोट- चूना भी रामबाण है गन्ने के रस मे यदि पथरी न हो तो

💛महिलाओ के गर्भशाय औऱ मासिक से जुड़ी समस्या:-
100ml पानी ले, 2 चम्मच शतावरी चूर्ण मिलाये , 5 मिनट गर्म करे, दिन में 2 बार पिये

💙बड़ो के लिए मात्रा सभी के साथ ही है💙
💙40 किलो तक वजन वाले बच्चो को मात्रा आधी पिलाए💙
💙20 किलो तक के बच्चो को 40 किलो वालो से भी आधी मात्रा दे💙

💜दंत मंजन :-
आंवला, हरड़, बहेडा, लवंग, पुदीना, हल्दी, नमक सभी को बराबर मात्रा में मिलाये दिन में 2 बार दाँत साफ करें

💜सिर् धोने के लिए:-
आवला हरड़ बहेडा के मिश्रण को रात पानी मे भिगोए , सुबह बालो पर 30 मिनट लगाए फिर बाल धो ले
नोट- आंवला रीठा शिक


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गिर कर उठना
उठ कर गिरना,
यही क्रम है
संसार का।

कर्मयोगी को,
फर्क नही पड़ता,
क्षणिक जीत
या हार का।


"नि:स्वार्थ" "कर्म" करते रहो,
जो भी होगा, "अच्छा" ही होगा
थोड़ा "late" होगा,
पर "latest" होगा
"बुरा" करने का विचार आए तो,
"कल" पर टालो 🕊
"अच्छा"करने का विचार आए तो
"आज" ही कर डालो

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मध्य युग में सम्पूर्ण यूरोप पर राज करने वाला
#रोम (इटली) नष्ट होने के कगार पे आ गया।
मध्य पूर्व को अपने कदमो से पददलित करने वाला
#ओस्मानिया साम्राज्य (ईरान, टर्की) अब घुटनो के बल हैं।
जिनके साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता था,
उस #ब्रिटिश साम्राज्य के उत्तराधिकारी बर्किंघम महल में कैद हैं,
जो स्वयं को आधुनिक युग की सबसे बड़ी शक्ति समझते थे
उस #रूस की सीमा बन्द है।
जिनके एक इशारे पर दुनिया के नक़्शे बदल जाते हैं, जो पूरी दुनिया का अघोषित चौधरी हैं,
उस #अमेरिका में लॉक डाउन है।
और, जो आने वाले समय में सबको निगल जाना चाहते थे,
वो #चीन आज मुँह छिपाता फिर रहा है और सबकी गालियाँ खा रहा है।
एक छोटे से परजीवी ने विश्व को घुटनो पर ला दिया है।
न एटम बम काम आ रहे न तेल के कुँए...
मानव का सारा विकास एक छोटे से
#विषाणु से सामना नहीं कर पा रहा।..
क्या हुआ ???... निकल गयी हेकड़ी ???
बस इतना ही कमाया था आपने इतने वर्षों में कि एक छोटे से जीव ने घरों में कैद कर दिया...
विश्व के सब देश आशा भरी नज़रो से देख रहे हैं हमारे देश #भारत की तरफ,
उस भारत की ओर जिसका # सदियों तक
अपमान करते रहे, लूटते रहे।
एक मामूली से जीव ने आपको आपकी औकात बता दी।।
भारत जानता है कि #युद्ध अभी शुरू हुआ है जैसे जैसे #ग्लोबल_वार्मिंग बढ़ेगी, # ग्लेशियरो की बर्फ पिघलेगी, और आज़ाद होंगे लाखों वर्षो से बर्फ की चादर में कैद #दानवीय_विषाणु ,
जिनका न आपको परिचय है और न लड़ने की कोई तैयारी।...
ये #कोरोना तो झाँकी है... #चेतावनी अभी है।...
उस आने वाली विपदा की, जिसे आपने जन्म दिया है।
क्या आप जानते हैं, इस आपदा से लड़ने का तरीका कहाँ छुपा है ???
तक्षशिला के खंडहरो में, नालंदा की राख में,
# शारदा_पीठ के अवशेषों में, # मार्तण्ड मन्दिर के पत्थरों में,,...
सूक्ष्म एवं परजीवियों से मनुष्य का युद्ध नया नहीं है।
ये तो सृष्टि के आरम्भ से अनवरत चल रहा है और सदैव चलता रहेगा।
इस से लड़ने के लिए के लिए हमने हथियार खोज भी लिया था।
मगर आपके अहंकार, आपके लालच, स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने की हठ-धर्मिता ने सब नष्ट कर दिया।
क्या चाहिए था आपको ??? #स्वर्ण एवं # रत्नो के भंडार ???
यूँ ही माँग लेते,... #राजा_बलि के वंशज और #कर्ण के अनुयायी आपको यूँ ही दान में दे देते।
सांसारिक वैभव को त्यागकर आंतरिक शांति की खोज करने वाले समाज के लिए वे सब यूँ भी मूल्यहीन ही थे।
ले जाते – मगर आपने ये क्या किया ???
#विश्व_बंधुत्व की बात करने वाले #हिन्दू_समाज को नष्ट कर दिया।
जिस #बर्बर का मन आया वही भारत चला आया।
#जीव में #शिव को देखने वाले समाज को नष्ट करने।
कोई #विश्व_विजेता बनने के लिए #तक्षशिला को तोड़ कर चला गया,
कोई #सोने की चमक में अँधा होकर #सोमनाथ लूट कर ले गया,
कोई #बख़्तियार_ख़िलजी खुद को ऊँचा दिखाने के लिए #नालंदा के पुस्तकालयों के ग्रंथों को जला गया,
किसी ने बर्बरता से #शारदा पीठ को नष्ट कर दिया,
किसी ने अपने #झंडे को ऊँचा दिखाने के लिए #विश्व_कल्याण का केंद्र बने #गुरुकुल_परंपरा को ही नष्ट कर दिया,,
और आज #करुणा भरी निगाहों से देख रहे हैं उसी #पराजित, #अपमानित, पद दलित #भारत_भूमि की ओर – जिसने अभी अभी अपने #घावों_को भरके
#अँगड़ाई लेना आरम्भ किया है।
हम फिर भी उन्हें निराश नहीं करेंगे,
फिर से #माँ_भारती_का_आँचल आपको इस संकट की घड़ी में #छाँव देगा,
#श्री_राम_के_वंशज इस #दानव से भी लड़ लेंगे।
किन्तु...???
किन्तु...???
मार्ग...???...
उन्ही नष्ट हुए #हवन_कुंडो_से निकलेगा।..
जिन्हे कभी आपने अपने पैरों की #ठोकर_से_तोड़ा था।
आपको उसी #नीम_और_पीपल_की_छाँव में आना होगा।..
जिसके लिए आपने हमारा #उपहास किया था।
आपको उसी #गाय_की_महिमा को स्वीकार करना होगा।..
जिसे आपने अपने स्वाद का कारण बना लिया...
उन्ही मंदिरो में जाके #शंखनाद_करना_होगा।...
जिनको कभी आपने तोड़ा था।
उन्ही वेदो को पढ़ना होगा...
जिन्हे कभी अट्टहास करते हुए नष्ट किया था।
उसी चन्दन , तुलसी को मस्तक पर धारण करना होगा।..
जिसके लिए कभी हमारे मस्तक धड़ से अलग किये गए थे।
....ये #प्रकृति_का_न्याय है और आपको स्वीकारना ही होगा ।।

#सभार
जय श्री राम 🙏🚩🚩🚩🚩🚩


 पुराने समय में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य से एक योगी ने कहा कि वह श्मशान में स्थित पीपल के पेड़ से बेताल को उतारकर लाए, उसे बेताल की जरूरत है। योगी की बात मानकर राजा बेताल को लाने के लिए श्मशान जाते हैं। बेताल ने शर्त रखी थी कि अगर विक्रम रास्ते में बोलेगा तो वह फिर से उसी पेड़ पर जाकर लटक जाएगा। चालाक बेताल विक्रम को कहानियां सुनाता और चतुराई से हर बार राजा के बंधन से छूट जाता था। जानिए उन्हीं कहानियों में से एक बहुत ही रोचक कहानी...
> एक ब्राह्मण परिवार में उनकी पुत्री विवाह योग्य हो गई। उसका नाम मालती था। वह बहुत ही सुंदर और गुणवान थी। उसके परिवार में लड़की के माता-पिता और एक भाई था। इन तीनों को मालती के विवाह की चिंता सता रही थी।
> एक दिन बाह्मण किसी शादी में गया और उसका भाई गुरुकुल पढ़ाई के लिए गया। घर में मां और बेटी दोनों थीं। ब्राह्मण को शादी में अपनी पुत्री के लिए एक सुयोग्य वर दिखाई दिया, उसने लड़के को वचन दे दिया कि वह लड़की का विवाह उसी से करेगा।
> गुरुकुल में भाई को एक गुणवान लड़का मिला। उसने उस लड़के को वचन दे दिया कि वह अपनी बहन की शादी उसी से कराएगा।
> उसी दिन ब्राह्मण के घर एक अनजान लड़का आया। मालती की मां को वह लड़का बहुत अच्छा लगा। उसकी मां ने उस लड़के को वचन दे दिया कि वह अपनी बेटी का विवाह उसी से करेगी।
> शाम को जब पूरा परिवार एक साथ मिला तो उन्हें मालूम हुआ कि उन्होंने अलग-अलग तीन लड़कों को वचन दे दिया है। अब उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर लड़की का विवाह किसके साथ किया जाए?
> इस दौरान लड़की को एक सांप ने कांट लिया और वह मर गई। ब्राह्मण परिवार ने उसका अंतिम संस्कार कर दिया। लड़की से विवाह करने वाले तीनों लड़के भी वहां आ गए थे। अंतिम संस्कार के बाद एक लड़के ने मालती की अस्थियां इकट्ठा कर ली, दूसरे लड़के ने दाह संस्कार के बाद बची हुई राख का संचय कर लिया और तीसरा लड़का योगी बनकर जंगल में निकल गया।
> एक दिन योगी लड़का घूमते-घूमते एक ब्राह्ण के घर पहुंचा। उस दिन ब्राह्मण का लड़का युद्ध में मारा गया था। जब उनके बेटे का शव घर पहुंचा तो ब्राह्मण की पत्नी विलाप करने लगी। तब ब्राह्मण ने अपने पूर्वजों की पोथी निकाली और उसमें से संजीवनी विद्या का जाप करके मृत पुत्र को फिर से जीवित कर दिया। ये देखकर योगी लड़के ने सोचा कि अगर ये पोथी उसे मिल जाए तो वह मालती को फिर से जीवित कर सकता है। रात में योगी लड़का ब्राह्मण पोथी चुरा कर उन दोनों के लड़कों के पास चले गया।
> मालती की अस्थियां और राख मिलाकर योगी लड़के ने संजीवनी मंत्र पढ़ा और मालती जीवित हो गई।
> इसके बाद तीनों लड़के लड़ने लगे कि वे मालती विवाह करेंगे। इतनी कहानी सुनाकर बेताल रुक गया और उसने विक्रम से पूछा कि राजन् बताओ मालती का असली हकदार कौन है, वह किस के साथ विवाह करेगी?
> विक्रम ने कहा कि जिसने हड्डियां रखीं, वह तो मालती के बेटे के बराबर हुआ, जिसने विद्या सीखकर जीवन-दान दिया, वह बाप के बराबर हुआ। जो राख लेकर रमा रहा, वही मालती का हकदार है।
> विक्रम का ये जवाब सुनकर बेताल ने कहा कि तुमने बिल्कुल सही जवाब दिया है, लेकिन तुम अपनी शर्त भूल गए। ये बोलकर बेताल फिर से उसी पेड़ पर लटक गया।


हिदीं में पत्नी के 47 नाम देखिये

पत्नी | अर्धांगिनी | लुगाई | बीवी | धर्मपत्नी | घरवाली | संगिनी | औरत | कलत्र | कांता | गृहस्वामिनी | गृहिणी | जनाना | जाया | जोरू | दारा | नारी | परिणीता | भार्या | वधू | वल्लभा | वामा | वामांगना | वामांगिनी | सजनी | सहचरी | सहधर्मिणी | स्त्री | गेहिनी | अंकशायिनी | गृहलक्ष्मी | प्राणप्रिया | जीवनसंगिनी | तिय | तिरिया | दयिरा | दुलहन | दुलहिन | प्राणवल्लभा | प्राणेश्वरी | प्रिया | प्रियतमा | बन्नी | वनिता | बेगम | हृदयेश्वरी | श्रीमती | सहगामिनी |

और अंग्रेजी में सिर्फ एक Wife


यदि समय हो तो समय से सम्बंधित भारतीय समय से जुड़ा यह लेख अवश्य पढ़े


मान से उज्जैन 23°11 अंश पर स्थित है। भौगोलिक गणना के अनुसार प्राचीन आचार्यों ने उज्जैन को शून्य रेखांश पर माना जाता है। कर्क रेखा भी यहीं से गुजरती है। देशांतर रेखा और कर्क रेखा यहीं एक-दूसरे को काटती है। रोहतक, अवन्ति और कुरुक्षेत्र ऐसे स्थल हैं, जो इस रेखा में आते हैं। देशांतर मध्यरेखा श्रीलंका से सुमेरु तक जाते हुए उज्जयिनी सहित अनेक नगरों को स्पर्श करती जाती है। 

 

प्राचीन भारतीय मान्यता के अनुसार जब उत्तरी ध्रुव की स्थिति पर 21 मार्च से प्राय: 6 मास का दिन होने लगता है। प्रथम 3 माह के पूरे होते ही सूर्य दक्षिण क्षितिज से बहुत दूर हो जाता है। यह वह समय होता है, जब सूर्य उज्जैन के ठीक ऊपर होता है। उज्जैन का अक्षांश व सूर्य की परम क्रांति दोनों ही 24 अक्षांश पर मानी गई है। सूर्य के ठीक सामने होने की यह स्थिति संसार के किसी और नगर की नहीं है।

 

उज्जैन को अपनी इस भौगोलिक स्थिति के कारण प्राचीनकाल के खगोलशास्त्रियों ने कालगणना का केंद्रबिंदु माना था और यहीं से संपूर्ण भारत ही नहीं, दुनिया का समय भी निर्धारित होता था। राजा जयसिंह द्वारा स्थापित वेधशाला आज भी इस नगरी को कालगणना के क्षेत्र में अग्रणी सिद्ध करती है। 

 

स्कंदपुराण के अनुसार ‘कालचक्र प्रवर्तकों महाकाल: प्रतायन:।’ इस प्रकार महाकालेश्वर को कालगणना का प्रवर्तक भी माना गया है। प्राचीन भारत की समय गणना का केंद्रबिंदु होने के कारण ही काल के आराध्य महाकाल हैं, जो भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। वराहपुराण में उज्जैन को शरीर का नाभि देश और महाकालेश्वर को अधिष्ठाता कहा गया है। महाकाल की यह कालजयी नगरी विश्व की नाभिस्थली है।

 

भारत के मध्य में स्थित होने के कारण उज्जैन को नाभिप्रदेश अथवा मणिपुर चक्र भी माना गया है। प्राचीन सूर्य सिद्धांत, ब्रह्मस्फुट सिद्धांत, आर्यभट्ट, भास्कराचार्य आदि ने उज्जयिनी के मध्यमोदय को ही स्वीकारा था। गणित और ज्योतिष के विद्वान वराहमिहिर का जन्म उज्जैन जिले के कायथा ग्राम में लगभग शक् संवत 427 में हुआ था। प्राचीन भारत के वे एकमात्र ऐसे विद्वान थे जिन्होंने ज्योतिष की समस्त विधाओं पर लेखन कर ग्रंथों की रचना की थी। उनके ग्रंथ में पंचसिद्धांतिका, बृहत्संहिता, बृहज्जनक विवाह पटल, यात्रा एवं लघुजातक आदि प्रसिद्ध हैं। 

 

अत: क्यों नहीं प्राचीन भारतीय मानक समय को अपनाकर रात को समय बदलने की परंपरा को खत्म किया जाए या भारत में 4 से 5 टाइम जोन नियुक्त किए जाएं। यदि इस ओर ध्यान दिया गया और कोई एक ऐसा रास्ता निकाला जाए जिससे कि भारत में भी अलग- अलग टाइम जोन होंगे तो निश्चित ही इससे सक्रिय कार्य के घंटों पर बड़ा फर्क पड़ेगा जिसके कारण विकास की गति में तेजी आएगी।.
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भारतीय कालगणना के अनुसार एक दिन और रात सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक में पूर्ण होते हैं जबकि अंग्रेजी कालगणना के अनुसार रात के 12 बजे जबरन दिन बदल दिया जाता है, जबकि उस वक्त उस दिन की रात ही चल रही होती है। समय की यह धारणा पूर्णत: अवैज्ञानिक है।

 

टाइम जोन को समान समय क्षेत्र कहते हैं। दुनिया की घड़ियों के समय का केंद्र वर्तमान में ब्रिटेन का ग्रीनविच शहर है। यहीं से संपूर्ण दुनिया की घड़ियों का समय तय होता है। इंडियन स्टैंडर्ड टाइम भी वहीं से तय होता है। आज के जमाने में घड़ियां स्थानीय स्टैंडर्ड टाइम के अनुसार चलती हैं, उसी हिसाब से सारे काम होते हैं। लेकिन क्या ये जरूरी है कि हर देश में एक ही टाइम जोन हो?

 

19वीं शताब्दी में भारतीय शहरों में विक्रमादित्य के समय से चले आ रहे स्थानीय समय को सूर्य के मुताबिक तय किया जाता था लेकिन ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में भारत में सबकुछ बदल गया। दरअसल, उस काल में रेलगाड़ियों का समय तय करने वालों ने यह परंपरा बदली। रेलवे नेटवर्क के विस्तार और औद्योगिक क्रांति ने इंटरनेशनल स्टैंडर्ड टाइम को जन्म दिया। साल 1884 में मेरिडियन कॉन्फ्रेंस में दुनिया को 24 टाइम जोनों में बांटा गया। उन्होंने दिन के 24 घंटे नियुक्त किए जिसे ग्रीनविच मीन टाइम (जीएमटी) के तौर पर जाना जाता है। बाद में इसे कोर्डिनेट यूनिवर्सल टाइम (यूटीसी) नाम दिया गया।

 

ब्रिटिश शासन के दौरान भारत दो जोनों में बंटा था लेकिन 1 सितंबर 1947 के दिन इंडियन स्टैंडर्ड टाइम (आईएसटी) जारी किया गया जिसके मुताबिक घड़ी 82.5 डिग्री पर एक वर्टिकल लाइन पर सेट कर दी गई, जो इलाहाबाद के पास के शंकरगढ़, मिर्जापुर से होकर गुजरता है। ये एक बेतुका फैसला था और साल-दर-साल सरकारों ने भी इसे सुधारने में कोई रुचि नहीं ली।

 

साल 1948 तक पूर्वी भारत में ‘कलकत्ता टाइम’ फॉलो किया जाता था। साल 1955 तक पश्चिमी भारत में ‘बंबई टाइम’ फॉलो किया जाता था। वर्तमान में दिल्ली टाइम फॉलो किया जाता है। इससे कई तरह की दिक्कतें पैदा होती हैं। भारत के उत्तर-पूर्व में जहां ब्रितानी चाय बागान चलाते थे, वहां ‘बागान टाइम’ फॉलो किया जाता था। ये आईएसटी से 1 घंटा आगे होता था और पश्चिमी तट के समय से 2 घंटे आगे। पूर्व से पश्चिम तक अमेरिका 4,800 किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और वो 9 टाइम जोन का पालन करता है, वहीं भारत पूर्व से पश्चिम तक 3,000 किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और कायदे से यहां भी कम से कम 2 या 3 टाइम जोन होने चाहिए। ऐसा करना भारत के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद हो सकता है।

 

उदाहरणार्थ, भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में इंडियन स्टैंडर्ड टाइम का सीधा नुकसान दिखता है। वहां लोग सुबह 6 बजे तक नाश्ता करके तैयार मिलते हैं, लेकिन सरकारी दफ्तर या अदालतें 10 बजे से पहले नहीं खुलते, वहीं बंद होने का समय 4 या 5 बजे शाम का होता है, क्योंकि वहां सूर्य सबसे पहले उदित होता है और अस्त भी। वे तब उठ जाते हैं जबकि पश्चिम और मध्यभारत के लोग गहरी नींद में सोए रहते हैं। अब जब पूर्वोत्तर के लोग घड़ी के अनुसार ऑफिस पहुंचते हैं तो निश्चित ही घड़ी के अनुसार ही वे लौटेंगे यानी रोजाना अधिकतम 4 घंटे का नुकसान। ये व्यापार, अर्थव्यवस्था के साथ नागरिकों के लिए भी नुकसानदेह है, क्योंकि स्टैंडर्ड टाइम के अनुसार सुबह के 7 बजे पूर्वोत्तर के टाइम में 10 बजे का समय होता है।

 

मान लीजिए अगर हम पूर्वी, मध्य और पश्चिमी टाइम जोन में भारत के हिस्से बांट लें- भारत का पूर्वी हिस्सा जहां सबसे पहले दिन की रोशनी पड़ती है, वहां काम सबसे पहले शुरू हो, फिर मध्य और आखिर में पश्चिम भारत में काम शुरू हो तो समूचे भारत में सक्रिय कार्य करने के घंटे बढ़ जाएंगे। ऐसा करने से ये सिर्फ समय का माप न रहकर देश के विकास को गति देने वाला एक औजार बन जाएगा।

 

प्राचीनकाल में ऐसी थी व्यवस्था : भारत में विक्रमादित्य के शासनकाल में संपूर्ण भारत का समय उज्जैन से तय होता था। यह समय सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक एक दिन-रात पर आधारित था और उसे एक दिवस माना जाता था। ग्रीक, फारसी, अरबी और रोमन लोगों ने भारतीय कालगणना से प्रेरणा लेकर ही अपने अपने यहां के समय को जानने के लिए अपने तरीके की वेधशालाएं बनाई थीं। रोमन कैलेंडर भी भारत के विक्रमादित्य कैलेंडर से ही प्रेरित था।

 

उज्जैन स्थित ज्योतिर्लिंग को 'महाकाल' इसीलिए कहा जाता था, क्योंकि वहीं से दुनियाभर का समय तय होता था। खगोलशास्त्रियों के अनुसार उज्जैन की भौगोलिक स्थिति विशिष्ट है। यह नगरी पृथ्वी और आकाश की सापेक्षता में ठीक मध्य में स्थित है इसलिए इसे पूर्व से ‘ग्रीनविच’ के रूप में भी जाना जाता है।

 

प्राचीन भारत की ‘ग्रीनविच’ यह नगरी देश के मानचित्र में 23.9 अंश उत्तर अक्षांश एवं 74.75 अंश पूर्व रेखांश पर समुद्र सतह से लगभग 1658 फीट ऊंचाई पर बसी है। वर्तमान में ग्रीनविच


रकंकाल मिला है। उत्तर के रेगिस्तानी इलाके में एम्प्टी क्षेत्र के नाम से जाना जाने वाला यह क्षेत्र सेना के नियंत्रण में है। यह वही इलाका है, जहां से कभी प्राचीनकाल में सरस्वती नदी बहती थी।

इस कंकाल को वर्ष 2007 में नेशनल जिओग्राफिक की टीम ने भारतीय सेना की सहायता से उत्तर भारत के इस इलाके में खोजा। 8 सितंबर 2007 को इस आशय की खबर कुछ समाचार-पत्रों में प्रकाशित हुई थी। हालांकि इस तरह की खबरों की सत्यता की कोई पुष्टि नहीं हुई है। इस मामले में जब तक कोई अधिकृत बयान नहीं जारी होता, यह असत्य ही मानी जा रही है।

बताया जाता है कि कद-काठी के हिसाब से यह कंकाल महाभारत के भीम पुत्र घटोत्कच के विवरण से मिलता-जुलता है। हालांकि इसकी तुलना अमेरिका में पाए जाने वाले बिगफुट से भी की जा रही है जिनकी औसत हाइट अनुमानत: 8 फुट की है। इसकी तुलना हिमालय में पाए जाने वाले यति से भी की जा रही है, जो बिगफुट के समान ही है।

माना जा रहा है कि इस तरह के विशालकाय मानव 5 लाख वर्ष पूर्व से 1 करोड़ 20 लाख वर्ष पूर्व के बीच में धरती पर रहा करते थे जिनका वजन लगभग 550 किलो हुआ करता था।

यह कंकाल देखकर पता चलता है कि किसी जमाने में भारत में ऐसे विशालकाय मानव भी रहा करते थे। माना जा रहा है कि भारत सरकार द्वारा अभी इस खोजबीन को गुप्त रखा जा रहा है।

खास बात यह है कि इतने बड़े मनुष्य के होने का कहीं कोई प्रमाण अभी तक प्राप्त नहीं हो सका था। क्या सचमुच इतने बड़े आकार के मानव होते थे? यह पहला प्रमाण है जिससे कि यह सिद्ध होता है कि उस काल में कितने ऊंचे मानव होते थे।
9. जतिंगा गांव : असम में स्थित यह गांव पक्षी आत्महत्या की घटनाओं के लिए सुर्खियों में बना हुआ है। कहा जाता है कि पक्षी यहां आकर आत्महत्या करते हैं।

जापान के माउंट फूजी तलहटी में आवकिगोहारा के घने जंगल में जिस तरह से लोग आत्महत्या करने आते हैं, ठीक उसी तरह से मानसून की बोझिल रात में जतिंगा के आसमान पर मंडराने लगता है मौत का काला साया। रोशनी की ओर झुंड के झुंड पखेरू आते हैं और काल के गाल में समा जाते हैं।

चिड़ियों के इस प्रकार सामूहिक आत्महत्या के पीछे क्या कारण है इस बात का पता आज तक नहीं लगाया जा सका। इस बात का पता लगाने के लिए कई शोध हो चुके हैं, परंतु प्रकृति के इस गूढ़ रहस्य के बारे में अभी भी ठोस रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। असम के कछार स्थित इस घाटी के रहस्यों को जानना जरूरी है।
10. भारत की गुफाएं : भारत में बहुत सारी प्राचीन गुफाएं हैं, जैसे बाघ की गुफाएं, अजंता- एलोरा की गुफाएं, एलीफेंटा की गुफाएं और भीम बेटका की गुफाएं। ये सभी गुफाएं किसने और कब बनाईं? इसका रहस्य अभी सुलझा नहीं है। अखंड भारत की बात करें तो अफगानिस्तान के बामियान की गुफाओं को भी इसमें शामिल किया जा सकता है। भीमबेटका में 750 गुफाएं हैं जिनमें 500 गुफाओं में शैलचित्र बने हैं। यहां की सबसे प्राचीन चित्रकारी को कुछ इतिहासकार 35 हजार वर्ष पुराना मानते हैं, तो कुछ 12,000 साल पुरानी।

मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में स्थित पुरापाषाणिक भीमबेटका की गुफाएं भोपाल से 46 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। ये विंध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुई हैं। भीमबेटका मध्यभारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विंध्याचल की पहाड़ियों के निचले हिस्से पर स्थित है। पूर्व पाषाणकाल से मध्य पाषाणकाल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का केंद्र रहा।
11. तिब्बत का यमद्वार : प्राचीन काल में तिब्बत को त्रिविष्टप कहते थे। यह अखंड भारत का ही हिस्सा हुआ करता था। तिब्बत को चीन ने अपने कब्जे में ले रखा है। तिब्बत में दारचेन से 30 मिनट की दूरी पर है यह यम का द्वार।

यम का द्वार पवित्र कैलाश पर्वत के रास्ते में पड़ता है। हिंदू मान्यता अनुसार, इसे मृत्यु के देवता यमराज के घर का प्रवेश द्वार माना जाता है। यह कैलाश पर्वत की परिक्रमा यात्रा के शुरुआती प्वाइंट पर है। तिब्बती लोग इसे चोरटेन कांग नग्यी के नाम से जानते हैं, जिसका मतलब होता है दो पैर वाले स्तूप।

ऐसा कहा जाता है कि यहां रात में रुकने वाला जीवित नहीं रह पाता। ऐसी कई घटनाएं हो भी चुकी हैं, लेकिन इसके पीछे के कारणों का खुलासा आज तक नहीं हो पाया है। साथ ही यह मंदिरनुमा द्वार किसने और कब बनाया, इसका कोई प्रमाण नहीं है। ढेरों शोध हुए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका।

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